सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में हुए एक सर्वे में पता लगा है कि स्कूली बच्चों में हेल्दी और हार्मफुल ईटिंग को लेकर काफी अवेयरनेस है। राजधानी के मौलाना रिसर्च के मुताबिक, 8 से लेकर 12 साल की ऐज ग्रुप के 80 से 90 फीसदी बच्चे इस बात से वाकिफ हैं कि ग्रीन वेजिटेबल्स, मिल्क और रूट्स उनकी सेहत के लिए अच्छे हैं, जबकि फास्ट फूड अनहेल्दी हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि वे इस पर अमल नहीं कर पा रहे। नहीं होता कंट्रोल : इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले 50 फीसदी बच्चे सप्ताह में तीन बार सॉफ्ट ड्रिंक्स, चॉकलेट्स और चिप्स खाते हैं। इनमें से 60 फीसदी का कहना है कि उन्हें पैरंट्स और फैमिली से जानकारी मिली कि जंक फूड उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं हैं। जबकि 20 फीसदी बच्चों को यह जानकारी मीडिया से मिली। यही नहीं, 90 फीसदी बच्चों को इस बात की जानकारी है कि सेहत की बेहतरी के लिए फिजिकल एक्टिविटी जरूरी है। बावजूद इसके वे ज्यादा एक्टिव नहीं हैं। यानी कि सिर्फ अवेयरनेस से उनकी ईटिंग हैबिट्स पर खास फर्क नहीं पड़ रहा। क्या है वजह : हेल्थ अवेयरनेस के बावजूद बच्चों के फास्ट फूड को तरजीह देने की कई वजहें हो सकती हैं। सायकायट्रिस्ट का कहना है कि जंक फूड को किस तरह से सर्व किया गया है। कैसा स्वाद है और यह कितनी आसानी से अवेलेबल है। स्टूडेंट्स के जंक फूड की ओर अट्रेक्ट होने में ये सब फैक्टर मैटर करते हैं। वैसे भी, जंक फूड दुनिया के हर कोने में आसानी से मिल जाता है। हमारे दिमाग में डोपामिन नाम का केमिकल मॉजूद होता है, जिससे जुड़े रास्ते अक्सर एडीक्शन की वजह बनते हैं। जंक फूड भी एडीक्शन जैसा ही है। इसी के चलते मैगी, बर्गर और पिज्जा की कल्पना से ही टेस्ट बड्स एक्टिवेट हो जाते हैं। बच्चों के जंक फूड अपनाने की एक वजह यह भी है कि इसका गलत इफेट तुरंत नहीं होता। इससे एकदम से हार्ट की प्रॉब्लम भी नहीं होती। वैसे, गलती पैरंट्स की भी है। आजकल बर्थडे पार्टीज में घर के खाने की बजाय वे फास्ट फूड सर्व करते हैं। न्यूट्रिशंस ऑप्शन : दरअसल यही वह उम्र है, जब बच्चों में खानेपीने की आदतें डिवेलप होती हैं। ऐसे में जंक फूड के कुछ ऑप्शन ट्राई किए जा सकते हैं, जिनका जायका भी उतना ही अच्छा है। डायटीशियन का कहना है कि पिज्जा भी हेल्दी हो सकता है। बस इसमें सब्जियां ज्यादा होनी चाहिए, चीज थोड़ा कम हो और वेजिटेबल्स ज्यादा हों। अगर नॉन वेज पिज्जा ले रहे हों, तो उसमें भी सब्जियाँ ज्यादा हों। इन दिनों मार्केट में मैदा की जगह पर मल्टीग्रेन पिज्जा भी अवेलेबल हैं। मल्टीग्रेन बेस के अलावा मल्टीग्रेन ब्रेड भी मार्केट में अवेलेबल हैं। इनमें भी वेजिटेबल डालकर सैंडविच की तरह से खाया जा सकता है। इसे बेक करके या ग्रिल करके घर में आसानी से बनाया जा सकता है। बात जहां तक बर्गर की है, मल्टीग्रेन बर्गर तो आपको कुछ फूड चेंस में भी मिल जाएंगे। नूडल्स की बात करें, तो मैदे की जगह पर ड्रूम व्हीट के नूडल्स ट्राई सकते हैं। बता दें कि हॉस्पिटल्स में रोगियों को ऐसे नूडल्स ही दिए जाते हैं। दरअसल इसमें व्हीट को इस तरह से पीसते हैं कि उसका फाइबर मौजूद रहता है। नूडल्स और पास्ता में खूब सारी सब्जियां डालकर बना सकते हैं। इसके अलावा, घर में सूजी के पूड़े में दाल और वेजिटेबल्स डालकर डोसा रेडी कर सकते हैं। हेल्दी बर्गर और स्प्राउट्स : बर्गर में अंदर में जो टिक्की डालते हैं, उसे ज्यादा फ्राई न करके हल्का फ्राई करना चाहिए। हां, आलू की जगह दूसरे ग्रीन वेजिटेबल्स डाले जा सकते हैं। पालक के पत्ते को मैश करके डाला जाए, तो भी बेहतरीन टेस्ट आएगा। हेल्दी स्नैस की बात करें, तो स्प्राउट्स का कोई जोड़ नहीं। इसे आप वेजिटेबल्स, नमक और वाइट बटर यूज करके इसे टेस्टी बना सकते हैं। रॉ स्प्राउट में अगर थोड़े अनार के दाने, कटे हुए सेब या टमाटर डाल दें तो यह टेस्टी लगेगा। स्प्राउट्स को मल्टीग्रेन ब्रेड में भर दें, तो हेल्दी सैंडविच बन सकता है। यही नहीं, आप स्प्राउट्स का चीला भी बना सकते हैं। चने के स्प्राउट्स को पीसकर और नमक डालकर उसका टिक्का बना सकते हैं। इसमें प्या और धनिया डाल दें तो यह और भी जायकेदार हो जाएगा। मूंग के चीले में आप वेजिटेबल्स भी डाल सकते हैं। इन चीलों को आप अपने बच्चे को लंच बॉस में भी दे सकते हैं। अगर सूजी के चीले में खूब सारी सब्जियां डाल दें, तो वह भी बच्चों को पसंद आएगा। क्या कहती है स्टडी 80 से 90 फीसदी बच्चे जानते हैं कि फास्ट फूड अनहेल्दी है। 50 फीसदी बच्चे सप्ताह में तीन बार सॉफ्ट ड्रिंक्स, चॉकलेट्स और चिप्स खाते हैं।