भारत को अंतरिक्ष में पहुँचाने वाले डॉ साराभाई, जिन्हे अब्दुल कलाम मानते थे अपना गुरु

डॉ. विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष अभियान का जनक कहा जाता है. वह इसलिए क्योंकि जिस ISRO की अंतरिक्ष की उड़ानों को आज हम पढ़ते या सुनते हैं, उसकी स्थापना डॉ. साराभाई ने ही की थी. जबकि देश के मिसाइलमैन और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद का मार्गदर्शन करने वाले भी डॉ. साराभाई ही थे. जीवन के अंतिम क्षणों में भी वे डॉ. कलाम से फोन पर SLV रॉकेट के डिजाइन की चर्चा में ही व्यस्त थे. ऐसे डॉ. साराभई की आज पुण्यतिथि है.

डॉ. साराभाई का जन्म गुजरात के अहमदाबाद के एक कारोबारी परिवार में 12 अगस्त 1919 को हुआ था. डॉ. विक्रम के पिता अंबालाल साराभाई अहमदाबाद के एक नामचीन कारोबारी थे. उनकी कई दाल मिलें थीं. वहीं डॉ विक्रम की मां का नाम सरला देवी था. अहमदाबाद के गुजरात कॉलेज से उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई की और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए.यहां उन्होंने कैम्ब्रिजज युनिवर्सिटी के सेंट जॉन कॉलेज में एडमिशन लिया. इसी युनिवर्सिटी से उन्होंने NST (Natural Science Tripos) की पढाई की. डॉ. साराभाई जब कैंब्रिज से पढ़ाई कर ले भारत वापस आए, तो उन्होंने अपने दोस्तों और परिवार द्वारा नियंत्रित एक चैरिटेबल ट्रस्ट को प्रयोग संस्था के रूप में डेवलप करने के लिए राजी किया. इसके बाद उन्होंने 11 सितंबर 1947 को अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान (PRL) की नींव रखी. इस संस्था का गठन डॉ. साराभाई का अंतरिक्ष की तरफ बढ़ाया गया पहला कदम माना जाता है. यहां रहकर उन्होंने 1966-71 तक कार्य किया. उसके बाद उन्हें परमाणु आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

डॉ. साराभाई ने न सिर्फ अंतरिक्ष की दुनिया के लिए काम किया बल्कि उनके उद्योग जगत के लोगों के साथ भी गहरे संबंध थे. लिहाजा उन्होंने इंडस्ट्रियलिस्ट दोस्तों की सहायता से अहमदाबाद में ही IIM अहमदाबाद की नींव रखी. यहीं नहीं वे अमहाबाद शहर के विकास कार्य  में भी बहुत सक्रिय रहे. उन्होंने ही भारत की पहली सैटेलाइट आर्यभट्ट को 1975 में रूस स्पेस सेंटर से लॉन्च किया था. पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद उन्हें अपना गुरु मानते थे. उन्होंने अपने अंतिम क्षणों में भी SLV के डिजाइन को लेकर डॉ. कलाम से फोन पर बात की थी. फोन रखने के बाद उन्हें हार्ट अटैक आया और उनकी मौत हो गई. डॉ. साराभई को 1966 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया और 1977 में उनकी मौत के बाद उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया.

 

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