सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को सुप्रीम कोर्ट जाने की अनुमति देने वाला अनुच्छेद 32 आखिर है क्या?

सीबीआई निदेशक  आलोक वर्मा ने खुद को छुट्टी पर भेजे जाने के ​खिलाफ गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने यह याचिका आर्टिकल या अनुच्छेद 32 के तहत दायर की थी। अब इस याचिका पर सुनवाई पूरी हो चुकी है और मुख्य न्यायाधीश ने सीवीसी को दो हफ्ते में  मामले की जांच पूरी करने का आदेश भी दे दिया है। यहां सवाल यह उठता है कि आखिर यह अनुच्छेद 32 है क्या? 

दरअसल, संविधान में आर्टिकल 32 से 35 तक संवैधानिक उपचारों का अधिकार दिया गया है। इन सभी अनुच्छेदों में अनुच्छेद 32 बहुत महत्वपूर्ण है। इस अनुच्छेद या आर्टिकल को संविधान द्वारा आम व्यक्ति को दिए गए मूल अधिकार के समान माना जाता है। दरअसल, यह आर्टिकल व्यक्ति को  जो भी मूल अधिकार मिले हैं, उनकी रक्षा के लिए बनाया गया है, इसलिए यह स्वयं में मूल अधिकार माना जाता है।  इस आर्टिकल 32 के तहत हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए 5 तरह की रिट जारी करने का अधिकार दिया गया है। यह हैं वे पांच रिट 

बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट- अगर कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है और उसे हिरासत में रखा गया है, तो कोर्ट यह रिट जारी करता है। इसके तहत व्यक्ति को तुरंत  कोर्ट के सामने पेश किया जाता है और अगर उसका अपराध सिद्ध हो जाता है, तो कोर्ट उसकी हिरासत अवधि को बढ़ा सकता है अन्यथा उसे छोड़ सकता है। कोर्ट इस रिट को किसी भी व्यक्ति के लिए  जारी कर सकता है

परमादेश रिट-इस रिट को कोर्ट केवल एक सरकारी अधिकारी के खिलाफ ही जारी करता है। अगर कोई  सरकारी अधिकारी अपने कानूनी कर्तव्य का पालन नहीं करता है, तो कोर्ट उसे नोटिस जारी कर इसका कारण पूछ सकता है। 

प्रतिषेध रिट- यह रिट केवल कोर्ट से संबंधित लोगों के खिलाफ ही जारी की जाती है। अगर  कोर्ट को लगता है कि किसी व्यक्ति ने कोर्ट संबंधी अधिकारों का उपयोग कर किसी अन्य व्यक्ति को गलत फायदा पहुंचाया है, तो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट उस व्यक्ति के खिलाफ इसे जारी करते हैं। 

उत्प्रेषण रिट- इस रिट को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट अपने अधीन आने वाले कोर्ट या फिर किसी अथॉरिटी के खिलाफ जारी करता है। इस रिट के तहत कोर्ट प्राधिकरणों, अदालतों से किसी सरकारी प्रक्रिया या कामकाज के बारे में जानकारी मांग सकता है

अधिकर पृच्छा रिट- यह रिट किसी भी शासकीय पद पर बैठे कर्मचारी को जारी की जाती है। इस रिट में यह देखा जाता है कि जो भी व्यक्ति उस पद पर नियुक्त किया गया है, वह उस पद के योग्य है भी या नहीं। कोर्ट ने जिस भी व्यक्ति के खिलाफ यह रिट जारी की होती है, उसे कोर्ट को यह साबित करना होता है कि उसने पद को  अपनी योग्यता के आधार पर हासिल किया है। कोई भी अधिकारी इसके तहत किसी भी मामले की जानकारी मांग सकता है। 

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