अपराधो की खीचो लगाम

वो मानवता के कर्ण धार मानव की कुछ चित्कार सुनो अपराधो की खीचो लगाम दुखियो की जा सिसकार सुनो बढकर देखो कोई अबला ऱछा हित तुझे पुकार रही कोई अनाथ है अश्रुभरे नयनो से तुम्हे निहार रही बूढे बुजुर्ग कुन्ठित मन से घुट-घुट कर जीवन काट रहे न कोई सहारा जीवन का तेरा ही रस्ता ताक रहे कोई गरीब बिन अन्न मरे कोई तन से कपडे बिहीन कोई बीमारी से तडपे नर्वस समाज है दिसा हीन तुम बढो मसीहा बन करके सबके दुख को सुख मे बदलो तुझमे भन्डार है शक्ती का तीसरा नेत्र अपना खोलो मानव का उपवन हरा-भरा करने का संकल्प उठा लो हे युग मानव इस दानवता की अब समाज से जडे उखाडो खुशियो का घर-घर भरो श्रोत हर ऑगन मे किलकार भरो फटकार और दुत्कार हरो आ दैविक सा चमत्कार करो कुछ नही असम्भव है जग मे बस केवल स्वंय सुधरना है  ये ख्वाब अगर सच हो जाये पृथ्वी पर स्वर्ग उतरना है

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