अपने भी अलग फ़साने थे

कुछ दिन पहले तक तो हम अनदेखे अनजाने थे । तुम भी तो थे अलग-अलग अपने भी अलग फ़साने थे ॥

फिर इक दिन ऐसा आया कि हम थे आखिर यहाँ मिले । धीरे-धीरे हौले-हौले  थे याराना के फूल खिले ॥

हर एक मुलाकातों में बढती गयी बातें बातों में । अकेलेपन की तपिश जो थी वो बदल गयी बरसातों में ॥

वो दिन भी क्या हसीन होते जब साथ मिले सब यारों का । जैसे कि झिलमिल रातों में जलसा हो चांद-सितारों का ॥

साथ तुम्हारा साथ हमारा पडता सब पर भारी है । है बेमिसाल अपनी यारी जो हमें जान से प्यारी है ॥

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