अंधेरों से भीतर के उजालों तक

मयखाना तेरी आँखें मय जाम में ढालूं क्या हैं होठ तेरे अमृत मैं प्यास बुझा लूँ क्या अब नींद भी आँखों से पूछ कर आती है आने से पहले कुछ ख्याब सजा लूँ क्या तस्वीर तेरी माना बोली है और न बोलेगी मैं उससे भी पूछूँ सीने से लगा लूँ क्या बहार के अंधेरों से भीतर के उजालों तक मैं देह का पर्दा हूँ मैं खुद को हटा लूँ क्या

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