देख राधिका वरण कृश्न, चितवन से मुस्काय,, श्याम संग रस माधुरी,जिय मे हरष हो जाय,, कदम्ब पेड़ झूला पड़ा, सखियां खूब रिझाये,, श्याम न आये झूलने,सोच रही मन बसाय,, हरी भरी वन शोभा की,निरख रहे प्रभु डोर, क्यू रूठी हो प्रिय सखी,झूले झूला खिंचे डोर, अम्बर पुष्प बरस रहे,देवी देवता देख हिलोर, राधा कृष्ण जोड़ी रहे,निरख रहे चहु ओर,,