अकैला निकल कर देख दुनिया को

खुली नजर से सब अच्छे लगते हैं, कभी आँख बन्द करके देख तमाशा दुनिया का. हौशियारी दिखाने से सब भोले बनते हैं, कभी मुर्ख बनकर देख चालाकी दुनिया की. जुबान खोलने से सब तारीफ करते हैं, कभी चुप रहकर सुन दिलों में भरे जहर दुनिया के. मजबुत हाथों से सब नजदीकी चाहते हैं, कभी खुद को बाँध कर देख बदलती दुनिया को. कदम तेज होने से सब साथ चलते हैं, कभी सुस्ता कर देख मतलब दुनिया का. चेहरा खुबसुरत होने से सब जान छिड़कते हैं, कभी कालिख पोत कर देख महौब्त दुनिया की. दौलत-शौहरत होने से सब अपनापन दिखाते हैं, कभी भिखारी बनकर देख रिश्ते दुनिया के. ताकतवर होने से सब सलाम ठोकते हैं, कभी अकैला निकल कर देख दुनिया को.

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