अफ़साने -गुलज़ार

अफ़साने...

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में एक पुराना खत खोला अनजाने में

जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में

शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।

 -गुलज़ार

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