शिक्षा के प्रसार के लिए भारत रत्न अबुल कलाम ने किया ये काम

वर्ष 1947 में भारत विभाजन हुआ था। यह तो लगभग सभी जानते हैं। मगर शायद कई लोग यह नहीं जानते हैं कि कुछ लोग इसके विरोध में थे। इन लोगों में मौलाना अबुल कलाम मुहीउद्दीन अहमद का नाम प्रमुख था। लोग इन्हें मौलाना आज़ाद के नाम से जानते हैं। वे वरिष्ठ राजनेता थे। उन्होंने हिंदू - मुस्लिम एकता का समर्थन किया। उन्हें आज़ाद भी कहा जाता था। उनका जन्म बंगाल निवासी मौलाना खैरूद्दीन के यहां हुआ था। पिता विद्वान थे और उनकी माता का नाम आलिया था। उनके पिता मौलाना खैरूद्दीन ने ही उनका नाम मोहिउद्दीन अहमद या फिर फिरोज़ बख्त रखा था।

उन्हें 10 वर्ष की आयु में कुरान की शिक्षा दी गई। 17 वर्ष की आयु में वे धर्म विज्ञान में शिक्षित हुए। इसके बाद जब परिवार कोलकाता बस गया तो उन्होंने लिसान एल सिद नामक पत्रिका की शुरूआत की। वे भारत में शिक्षामंत्री बने। उन्हें अरबी, फारसी, उर्दू, धार्मिक विषयों के साथ गणित, यूनानी चिकित्सा पद्धति सुलेखन और अन्य विषयों की शिक्षा भी दी जाती थी। वर्ष 1905 में धार्मिक आधार पर बंगाल का विभाजन किया गया। मुस्लिम मध्यम वर्ग ने इस तरह के विभाजन को समर्थन दिया।

मौलाना आज़ाद इस विभाजन के विरोध में थे। वे अंग्रेजी राज के खिलाफ थे। उन्होंने वर्ष 1912 में अल हिलाल नामक उर्दू समाचार का प्रकाशन प्रारंभ किया। समाचार पत्र में प्रगतिशील विचार, कुशल तर्क और इस्लामी जनश्रृतियां शामिल की गई थीं। उन्होंने 1919 मे ंरेलेट एक्ट के विरोध में किए गए आंदोलन में योगदान दिया। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें कांग्रेस ने अपने मुख्य प्रवक्ता के की भूमिका दी।

उन्होंने राष्ट्रीय एकता के लिए कार्य किया। उन्हें स्वाधीन भारत का शिक्षा मंत्री बनाया गया। उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और आईआईटी की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके द्वारा संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी आदि की स्थापना करवाई गई। शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 22 फरवरी 1958 को उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें वर्ष 1992 में मरणोपरांत भारत रत्न अलंकरण से सम्मानित किया गया।

'राष्ट्रीय शिक्षा दिवस': शिक्षा के अँधेरे को मिटा रहा 'मौलाना अबुल कलाम' का प्रयास

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