अब मैं किसको बुलाऊँ

न सूझे है कुछ आज किस सम्त जाऊँ किसे दूँ सदा अब मैं किसको बुलाऊँ सुलझते नहीं उलझनों के ये धागे  मैं कब से सब अक़्लो-हुनर आजमाऊँ

Related News