हर लहर को साहिल नही आता... ना हो पाया मुकम्मल, कभी और सही, इश्क़ का सपना अभी भी खोना नही आता। हिम्मत करके समेटे हूँ ख़ुद को, ऐसा नही के कभी रोना नही आता। वो हँस दे तो सारी दूरियाँ कुर्बत हो जाए, हँसा के उसको, कभी ख़ुद पे रोना नही आता। बन जाऊँगा मैं वो, जो उसे पसंद हैं, और किसी को वक़्त अब देना नही आता। बन के सँवरूँ तो कह देना इश्क़ ने कमाल किया, हर इश्क़ को बर्बाद करना नही आता। तेरी दूरियों को ढलूँगा मैं ख़ुद को बनाने में, फिर कोई कहे मुझसे, सहना नही आता। ख़ुद पे खा लेंगे हज़ार कोड़े रुसवाई के, हँस के कह देना, तुम्हें बचाना नही आता। इंतेज़ार हैं कभी तो मिलेंगे किसी जहान में, तुम्हें भी ना कह के दिल दुखाना नही आता। तेरे हर ख़याल को मैंने अपनी सोच दी हैं, बस बिछड़ के तुझसे, तेरे वाला जीना नही आता। अकेलापन हैं यहाँ अब तेरी जगह पर, मुझे आज भी उसको भरना नही आता। इजहार ए मोहब्बत ना किया, यूँही चला गया, इस तड़प से अब निकलने का रस्ता नही आता। यहीं इसी मोड़ पर हूँ मैं, जब भी तू आए, आकर ये ना कहना, अब पास आना नही आता। 'आस' हैं कि लौट आओ तुम, लेकिन ये जानता हूँ, हर लहर को साहिल नही आता। -रोहित जैन "राही"