आंधी में उड आई मिट्टी की खुशबू

आंधी में उड आई मिट्टी की खुशबू की गजब निराली थी नथुनो में भरकर असर दिखा, कर गई सबको मतवाली थी । आंखे फ़डकी, धडकी छाती, भडकी बांहे लहू खौल उठा निश्चित ही यह पीत सुधा तो हल्दीघाटी वाली थी ॥

चलो करें कुछ बात हमारे गौरवमय इतिहासों की कुटिल कंटकी चाल बिछी थी जहाँ मुगल के झांसों की । पर साम, दाम, भय, भेद के आगे वह तो झुक नहीं सकता था जिसकी नजरों में कीमत थी बस आजादी की सांसों की ॥

जलाल खां ने तैश में आकर भौंहें बहुत मरोडी थी मानसिंह ने आकर उनसे बडी मित्रता जोडी थी । ऊंच-नीच, भय-भेद दिखाया भगवानदास टोडरमल ने पर आजादी से समझौता तो बहुत दूर की कौडी थी ॥

आभामंडल सूरज का बादल में छिप नहीं सकता था स्वाभिमान अय्याशी खातिर कभी नहीं बिक सकता था । एडी-चोटी का जोर लगाया मुगल बादशाह अकबर ने आखिर चूहे के आगे नाहर कैसे झुक सकता था ॥

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