आहिस्ता चल ऐ ज़िन्दगी...

"आहिस्ता चल ऐ ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाने बाकी है,  कुछ दर्द मिटाने बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाने बाकी है,

रफ्तार में तेरे चलने से, कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए, रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हसाना बाकी है,

कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है, ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना अभी बाकी है,

कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए, उन टूटे-छूटे रिश्तों के, ज़ख्मों को मिटाना बाकी है,

तू आगे चल में आती हुं, क्या छोड़ तुजे जी पाऊंगी ? इन साँसों पर हक है जिनका, उनको समझाना बाकी है,

आहिस्ता चल ऐ जिंदगी , अभी कई क़र्ज़ चुकाने बाकी है !!...

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