सूर्य और शनि एक साथ होते हैं तो पिता पुत्र से डरता है

नौ ग्रहों में सूर्य, सर्वाधिक प्रभावशाली और तेज गति से चलने वाला ग्रह है। जबकि शनि धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। सूर्य पिता है और शनि पुत्र है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य और शनि एक साथ होते हैं तो, पिता पुत्र से डरता है। ऐसी स्थिति में सूर्य की वजह से शनि का प्रभाव बहुत कम हो जाता है। पुत्र पिता से अलग रहता है तो निश्चित ही आपसी मतभेद भी हो जाते हैं।

सूर्य-शनि के इस योग से पुत्र की पिता से नहीं बनती या पिता का साथ नहीं मिल पाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-शनि समसप्तक हो तो पिता-पुत्र में सदैव वैचारिक मतभेद बने रहते हैं।सूर्य-शनि का समसप्तक योग लग्न और सप्तम भाव में बने तो घर-परिवार से वैचारिक मतभेद का कारण बनता है। स्वास्थ्य में भी गड़बड़ हो सकती है। वाणी में संयम न रख पाने की वजह से कई बार बनते काम बिगड़ सकते हैं।

धन का संग्रह भी नहीं हो पाता है तृतीय और नवम भाव सूर्य-शनि का योग बनने भाइयों से, मित्रों से, पार्टनरशिप से हानि हो सकती है। निरन्तर भाग्य में भी बाधाएं आती हैं। धर्म-कर्म में आस्था नहीं रहती। चतुर्थ भाव और दशम भाव में बनने वाला समसप्तक योग पिता से दूर करा देता है। पिता-पुत्र एक साथ नहीं रह पाते है। किसी कारण से पुत्र की दूरी पिता से बनी रहती है।

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