बीमा खरीदारों के लिए बुरी खबर चुकाना होगा ईलाज का पैसा

बीमा खरीदारों के एक बुरी खबर आई है। जिसके अनुसार अब मरीज के घरवालों को खुद अस्पताल का बिल चुकाना होता है और उसके बाद इस बिल को बीमा कंपनियों से रिकवर करना होता है। एक ऐक्टिविस्ट की कोर्ट में दाखिल की गई याचिका के बाद पेश किए गए आंकड़ों से पता चल रहा है कि कैशलेस हेल्थ कवर के लिए हो रहे क्लेम पे-आउट पारंपरिक रीइंबर्समेंट सुविधा के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं। इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDA की ओर से बॉम्बे हाईकोर्ट में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, कई बीमारियों के मामलों में तो ऐवरेज कैशलेस क्लेम डिसबर्सल रीइंबर्समेंट क्लेम पे-आउट के मुकाबले करीब दोगुने तक हैं।

ऐक्टिविस्ट्स का मानना है कि रीइंबर्समेंट क्लेम्स को आंशिक तौर पर सेटल किया जाता है क्योंकि इंडीविजुअल पॉलिसीहोल्डर्स के पास इस स्थिति में मोलभाव करने की ताकत नहीं होती है, जबकि हॉस्पिटल्स बीमा कंपनियों के साथ अपने संबंधों के चलते क्लेम को पूरी तरह से सेटल करा सकते हैं। रीइंबर्समेंट और कैशलेस क्लेम्स पर डिस्क्लोजर इसी मामले से जुड़ी लगातार जारी कोर्ट कार्यवाही का नतीजा है। यह पाया गया था कि 22 बीमारियों में रीइंबर्समेंट अमाउंट सभी मामलों में कम रहा है। इसमें मेंटल डिसऑर्डर की बीमारी एकमात्र अपवाद है।

बीमा कंपनियों का कहना है कि पॉलिसीहोल्डर्स में भी ज्यादा खर्च वाले मामलों में कैशलेस का चुनाव करने की प्रवृत्ति देखी गई है, जबकि कम खर्च वाले इलाज में वे रीइंबर्समेंट का रास्ता अख्तियार करते हैं। मिसाल के तौर पर, फ्रैक्चर का इलाज कराने वाला पेशेंट अपनी जेब से बिल भर सकता है और इसके लिए रीइंबर्समेंट क्लेम दाखिल कर सकता है, लेकिन जो शख्स कार्डियक सर्जरी से गुजर रहा है, वह कैशलेस फैसिलिटी का चुनाव करता है। इंश्योरेंस कंपनी के ऐग्जिक्युटिव ने कहा, 'दोनों को एक ही बीमारी के मद में रखा जाएगा, लेकिन यह चीज नैचरल है कि कार्डियक बीमारी वाले को पे-आउट ज्यादा होगा।'

Related News