आज फिर उठ पड़ी है ऊँगलीयान

मैं हिंदुस्तान हूँ और आज बड़ा विचलित हूँ।। परेशां जान हूँ और आज बड़ा विचलित हूँ।। आज लड़ पड़ते हैं क्यों लोग मेरे आँगन में, बँटा मकान हूँ और आज बड़ा विचलित हूँ।। आज फिर उठ पड़ी है ऊँगली मेरी सीता पे, पराजित राम हूँ और आज बड़ा विचलित हूँ।। कभी कहते थे लोग सोने की चिड़िया मुझको, लुटा जहान हूँ और आज बड़ा विचलित हूँ।। क्यों खेली जा रही है आज ख़ूनी होली यहाँ चुकाता दाम हूँ और आज बड़ा विचलित हूँ।। रची अपनों ने मेरी हत्या की हर साजिश है, हताहत प्राण हूँ और आज बड़ा विचलित हूँ।। मैं बूढ़ा हो गया हूँ तुम तरस खाओ थोडा, तुम्हारी आन हूँ और आज बड़ा विचलित हूँ।। मैं बेबस भीष्म सा लेटा हूँ आज शैय्या पर, बड़ा महान हूँ पर आज बड़ा विचलित हूँ।।

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