इंसान का कांपीटिशन खुद से है, किसी ओर से नहीं
इंसान का कांपीटिशन खुद से है, किसी ओर से नहीं
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जमाना ग्लैमर और मनी का है, यूथ जनरेशन ग्लैमर और मनी के पीछे भागती है। इस भागती-दौड़ती जिंदगी में हमें ये ख्याल नहीं आता कि हम कहां पहुंच चुके है और हमारे हाथ से क्या-क्या छूट गया। इस बात से मधूर भंडारकर की फिल्म हिरोईन का डायलॉग याद आता है जिसमें हेलन कहती है, ग्लैमर की चकाचौंध में इंसान इतना आगे बढ़ जाता है, उसे ख्याल ही नहीं होता है, क्या पीछे छूट गया है। यह हाल सिर्फ ग्लैमर दुनिया का ही नहीं बल्कि शहर में रहने वाले हर दूसरे व्यक्ति का है। हर कोई अपने काम में मसरूफ है, किसी के पास इतना समय नहीं होता है, किसी और के मन की बात जाने। जो परिवार के साथ रहते है, वह कभी न कभी अपने मन की बाते शेयर कर लेते है। मगर जो बाहर रहते है, उनका क्या ?

किसी से अगर आप ये सवाल करेंगे कि क्या क्या पीछे छूट गया या फलाना इंसान ने आपके बारे में ऐसा कहा तो जवाब यहीं मिलेगा, ”जाने दो, कौन इतना सोचता है भला”। ये अच्छी बात है कि आज हम इतने एडवांस हो गए है कि छोटी बातों को नजरअंदाज करना सीख गए है। मगर छोटी छोटी चीजों का जब स्टॉक इकठ्ठा हो जाता है तब वह चीजे तकलीफदायक हो जाती है। कहते है बुंद बुंद से सागर भरता है और यही हाल होता है जब हम छोटी छोटी चीजों को बर्दाश्त करते जाते है। दोबारा आते है ग्लैमर और मनी पर। क्या कभी आपने सोचा है कि हम आगे तो बढ़ रहे है मगर अपनी जड़ो को भूलते जा रहे है। हमारे खाने में आज मिलावट है, पैक्ड आटा कभी लाए गए गेहूं को पिसाकर बनाए गए आटे का मुकाबला नहीं कर सकते। बारीश में भीग कर जलेबीयां खाना या गरमा गरम भुट्टो का मजा आपको किसी शॉपिंग मॉल में नहीं आ सकता। हम फिर भी पैसे के पीछे भागते है, क्योंकि पैसा ऐसी चीज है जो जरूरत होती है। जरूरत के सामने हम हर एक चीज को भूल जाते है। किसी की बुनियादी जरूरते पूरी नहीं हो पा रही है तो वह यहीं सोचेगा कि कैसे मैं इस परेशानी को कम करू। उसकी सारी ताकते वहीं लग जाती है, इस युद्ध में उसका सामना ऐसे लोगों से होता है, जो उसे सिर्फ जरूरतें पूरी करने को नहीं बल्कि लाइफस्टाइल मैंटेन करने की चकाचौंध में दाखिल करवा देते है। लाइफस्टाइल मैंटेन करना कुछ गलत नहीं है, मगर इस रास्ते पर भटक जाना वह गलत है।

दूसरो को सामने बेहतर दिखने में कोई सच्ची खुशी महसूस नहीं होती है, एक वक्त तक ये चीजे अच्छी लगती है, फिर बेमानी हो जाती है। किसी भी तरह के भटकाव से बचने के लिए जरूरी है, भले ही हम कितने भी व्यस्त है, दिन में कम से कम खुद के लिए वक्त जरूर निकाले। उस वक्त में खुद की जरूरतो, ख्वाहीश, लक्ष्य के बारे में सोचना चाहिए कि वाकई में हम जिंदगी से चाहते क्या है। इस फेहरिस्त में यह न भुले कि हमारे घर परिवार और दोस्तों से रिश्ते न बिगड़े। अगर उनसे कुछ कहा सूनी या मनमुटाव हो गया है तो निकाले गए इस खाली वक्त में उसे ठीक करे। जिंदगी का यहीं फलसफा है, कोई भी चीज परफेक्ट नहीं होती, हर चीज का अपना एक मजा और अपना एक सुकुन होता है। बस याद रखिए इस तेजतर्रार चलने वाली जिंदगी में ऐसा कुछ न करे कि खुद को खो दे। आईने से मिलना और उससे जीतना सबसे बड़ी जीत है। “इंसान का कांपीटिशन खुद से है, किसी ओर से नहीं,” जिस दिन ये बात हमारी समझ में आ जाएगी, उस दिन दिखावे से दूर हम खुद की असल खुशीयों और ख्वाहीशों को पूरा करने के बारे में सोचेंगे।

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