राजनीतिक दलों के चुनावी चन्दे में पारदर्शिता जरुरी
राजनीतिक दलों के चुनावी चन्दे में पारदर्शिता जरुरी
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8 नवम्बर को जब से पीएम मोदी ने 500 और 1000 के नोटों को बन्द किया है, तब से देश की अर्थव्यवस्था में कई दृश्य देखने को मिले हैं. इसमें देश भर के एटीएम और बैंको के सामने कतार में लगी आम जनता की तकलीफें, बेहोशी और मौत होने के मामले के अलावा काले धन को सफ़ेद करने में बैंक अधिकारियों की मिलीभगत, काले धन के पहाड़ और नए दो हजार के नोटों की बड़ी संख्या में बरामदगी शामिल है. उधर विपक्ष के हमले के बाद भी देश की आम जनता प्रधान मंत्री मोदी को एक ईमानदार व्यक्ति मानते हुए उनके किये प्रयासों को पसन्द करके सब कुछ सहन कर रही है.

निःसंदेह पीएम मोदी का नोटबन्दी का फैसला ऐतिहासिक होकर दूरगामी परिणाम देने वाला है.देश वालों को इस बात की ख़ुशी है कि किसी पीएम ने इतना बड़ा कदम उठाने की हिम्मत तो की. खुद पीएम ने एक सभा में कहा था कि यह कदम उठाकर मैंने कई बड़े लोगों से दुश्मनी मोल ले ली है.लोग मेरी जान भी ले सकते हैं.जान की जोखिम उठाकर इतना बड़ा फैसला लेने वाले पीएम नरेंद्र मोदी राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चन्दे के मामले में पारदर्शिता नहीं ला पाए हैं.

आपको जानकारी दे दें कि देश की प्रमुख 7 राष्ट्रीय पार्टियों को वर्ष 2015-16 में 20 हजार रुपये से अधिक की सीमा में 102 करोड़ का चंदा मिला है. यह रकम 1,744 लोगों द्वारा दिए गए चंदे से मिली है.सबसे अधिक चंदा बीजेपी को मिला है. 613 दानदाताओं ने बीजेपी को कुल 76 करोड़ रुपये चंदा दिया है.साथ ही एक खेदजजनक बात से भी रूबरू करवा दें कि कांग्रेस और बीजेपी ने अपने आयकर रिटर्न की जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दी है. इसलिए 20 हजार रुपये से कम की सीमा में कितना चंदा इन्हें मिला इसकी जानकारी नही मिल पाई है.20 हजार से कम की राशि में मिलने वाले चन्दे का इसमें जिक्र नही किया गया है. ऐसे में काले धन को 20 -20 हजार से कम की राशि में राजनीतिक दलों को चन्दा देकर उसे सफ़ेद करने से इंकार नही किया जा सकता है. चूँकि चन्दा राजनीतिक दलों को दिया जा रहा है इसलिए कालेधन वाले इसलिए निश्चिन्त हो जाते हैं कि उन पर कोई आंच नहीं आएगी.अगर कुछ हुआ भी तो पोलिटिकल पार्टी वालों का संरक्षण मिल ही आएगा.चुनावी चन्दे कि यह अपारदर्शिता ख़त्म होनी चाहिए.

एक और खास बात का जिक्र करना जरुरी है कि राजनीतिक पार्टियों को जो चन्दा दिया जाता है उसका ऑडिट सभी पार्टियों के अपने निजी ऑडिटरों द्वारा करवाया जाता है. ऐसी दशा में कालेधन को सफेद करने की आशंकाएं बलवती हो जाती है.जबकि निर्वाचन आयोग सभी राजनीतिक दलों से बार -बार आग्रह कर रहा कि वे उन्हें मिले राजनीतिक चन्दे का ऑडिट 'कैग ' से करवाएं.लेकिन कोई भी राजनीतिक दल इस ओर इसलिए ध्यान नहीं दे रहे हैं, क्योंकि सबके हित प्रभावित हो रहे हैं.यहां बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है कि राजनीतिक दलों को भले ही एक रुपए का चन्दा मिले उसका भी उल्लेख करना चाहिए.

इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह है कि वे एक और जोखिम उठाकर चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए कठोर कदम उठाएं . हालाँकि यह कदम बर्र के छत्ते में हाथ डालने के समान है, फिर भी नोटबन्दी की तुलना में यह कम जोखिम वाला है, क्योंकि नोटबन्दी से पूरा देश प्रभावित हुआ है, जबकि चुनावी चन्दे में पारदर्शिता लाने से हालाँकि देश की पार्टियों के हितों पर चोट पहुंचेगी, फिर भी राजनीतिक शुचिता का शुभारम्भ हो जाएगा.इस प्रयास का अपरोक्ष असर कालेधन वालों पर भी पड़ेगा, क्योंकि चुनाव आयोग के अनुसार देश की 200 ऐसी राजनीतिक पार्टियां हैं जिन्होंनेअपने टैक्स की सही जानकारी निर्वाचन आयोग को नहीं दी है.ऐसा मन जा रहा है कि ऐसी निष्क्रिय पार्टियों को चन्दा दिखाकर काले धन वाले बच जाते हैं , क्योकि इन दलों को चन्दा देने पर टेक्स नही देना पड़ता. इससे देश की अर्थ व्यवस्था को दोहरा नुकसान होता है. एक तो आय कर के रूप में राजस्व नहीं मिलता , वहीँ ऐसे लोग कालेधन का इस्तेमाल गलत गतिविधियों में करते हैं. जिसका खामियाजा अंततः पूरे देश को भुगतना पड़ता है.              

                                                                                                                       -मोहन जोशी       

 

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