राजनीति के रंगमंच पर संप्रदाय और जाति के भेद की सुनाई दे रही आवाज़
राजनीति के रंगमंच पर संप्रदाय और जाति के भेद की सुनाई दे रही आवाज़
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इन दिनों देशभर में चुनावी माहौल है देशभर में नेता कई राज्यों के चुनावों को लेकर प्रचार - प्रसार में लगे हैं। हालात ये हैं कि नेता एक दूसरे की पार्टी का विरोध करने के लिए सांप्रदायिक भावनाऐं भड़काने में लगे हैं। ऐसे में देश में अलग तरह की राजनीति चल रही है। कहीं दलित हत्या का मसला उठ रहा है तो कहीं एकाएक जय जय श्री राम के नारे लग रहे हैं। रामलला हम आऐंगे की बात हो रही है। तिलक, तराजू और तलवार को सहेजने वाले दल सत्तापक्ष का विरोध कर रहे हैं तो कोई राष्ट्रीय दल तिलक तराजू और तलवार की पैरोकार मायावती को महिला वोट बैंक से डराने में लगी है।

ओवैसी भी उत्तरप्रदेश की राजनीति में तरह - तरह से कूद रहे हैं। कांग्रेस के क्या कहने कांग्रेस तो खाट से भाजपा, सपा और न जाने कितनों पर वार कर रही है। उत्तरप्रदेश, पंजाब के ही साथ अब तो आने वाले समय में गुजरात राज्य के विधानसभा चुनाव के लिए भी राजनीति हो रही है।

थोथे राजनीतिक प्रचार में कहीं पंथ, संप्रदाय और जाति के वोट बैंक को बहलाया जा रहा है। वोटर्स को फुसलाने के लिए दंबंग बनाम दलित, हिंदू बनाम मुसलमान के बीच विरोध पैदा किया जा रहा है। विकास की बात तो कही जा रही है लेकिन विकास का शोर काफी धीमा है जो राजनीतिक के रंगंच पर केवल दिखावे के लिए रखा गया है असल मसले तो पाश्र्व से पर्दे के सामने बिखेरे जा रहे हैं। नफा नुकसान की राजनीति में सभी एक दूसरे के साथ भिड़ रहे हैं।

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