कैसे लाऐं पदक, जब ना मिले कोई मदद
कैसे लाऐं पदक, जब ना मिले कोई मदद
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रियो ओलिंपिक का आयोजन समाप्त हो गया है। देशभर में रक्षाबंधन की खुशियां भी मनाई जा चुकी हैं मगर अब देशभर में रियो ओलिंपिक से लौटे खिलाड़ियों की जीत और हार पर चर्चा हो रही है। इस चर्चा के तहत भारतीय खिलाड़ियों द्वारा पदक न जीत पाने की नाकामी पर भी चर्चा हो रही हैं खिलाड़ियों के बयान सामने आ रहे हैं तो कहीं - कहीं पर बयान बहादुर भी मुखर हो गए हैं। मगर इन सभी के बीच कुछ खिलाड़ी हैं जो मैचों के दौरान भारतीय प्रबंधकों का सहयोग न मिलने की बात कर रहे हैं।

इनमें एक है एथलीट जैशा। एथलीट जैशा ने रियो ओलिंपिक में मैराथन रेस में भागीदारी की थी मगर अपनी रेस समाप्त करने के बाद वह वह बेहोश होकर गिर गई। जैशा का कहना था कि दौड़ के दौरान उसे पर्याप्त पानी और एनर्जी ड्रिंक नहीं मिला। इस तरह की बात को भले ही एथलेटिक्स फेडरेशन आॅफ इंडिया नकार दे। मगर जैशा की बात यह बताती है कि भारत में खेल आयोजनों के प्रति कितनी गंभीरता है।

आखिर खेलों को लेकर प्रबंधक मेहनत क्यों नहीं करता। खेलों के एसोसिएशन की बात, उनकी मांग और उनका प्रबंध अलग होता है तो ओलिंपिक संघ और सरकारी खेल संगठन का प्रबंध अलग होता है। यही बातें राष्ट्रीय स्तर से स्थानीय स्तर तक नज़र आती हैं। ऐसे में जिन खेलों में खिलाड़ी अपने स्तर पर, और उनके खेल संगठन उनके स्तर पर प्रयास करते हैं उन खेलों में तमगे मिलते हैं और सफलता मिलती है लेकिन जिन खेलों की व्यवस्था सामूहिक संगठन या उनके फेडरेशन की होती है वहां पर उदासीनता नज़र आती है।

भारत की एथलीट को पानी और एनर्जी ड्रिंक्स न दिया जाना या फिर खिलाड़ी का बेहोश हो जाना भारत के लिए भी चिंता का विषय है। वह देश जिसने ओलिंपिक में अपना सबसे बड़ा दल तो भेज दिया लेकिन खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त प्रबंध नहीं कर पाया। जब इस तरह की बातें सामने आती हैं तो फिर रियो में इंडिया जियो के नारे कुछ कमजोर हो जाते हैं।

'लव गडकरी'

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