छत टपकती है उसके कच्चे घर की, वो किसान फिर भी बारिश की दुआ मांगता है
छत टपकती है उसके कच्चे घर की, वो किसान फिर भी बारिश की दुआ मांगता है
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पोस्टमार्टम के बाद जैसे ही हरिया की लाश बीरपुर गांव में उसके कच्चे घर में पहुंची परिवार वाले दहाड़ मारकर रोने लगे.पत्नी जानकी अपने पति की लाश देखकर अपनी सुध खो बैठी, तो उधर 22 साल की जवान बेटी राधा का भी रो -रो कर बुरा हाल हो रहा था.सहकारी समिति के कर्ज के साथ बेटी राधा के हाथ पीले करने की चिंता में कल रात हरिया ने नाले के पास स्थित पेड़ पर अपने ही साफे से गले में फंदा लगाकर ख़ुदकुशी कर ली थी. रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों ने जल्दी -जल्दी मृतक की अंतिम रस्में पूरी कर उसकी उसी पेड़ के सामने अंत्येष्टि कर दी जहां उसने फांसी लगाईं थी.

दरअसल पिछले साल अपने3 बीघा खेत में रबी की फसल में गेहूं की सोने जैसी चमकती बालियों को देखकर हरिया बहुत खुश था कि इस साल अच्छी फसल होगी तो वह वह सहकारी समिति का कर्ज चुकाकर अगले साल फिर खेत के लिए कर्ज ले लेगा लेकिन इस साल बेटी राधा की शादी जरूर कर देगा. रिश्ते के लिए उसने एक दो जगह बात भी चला रखी थी. लेकिन लगता है किसानों को सपने देखने का भी हक़ नहीं है.एक शाम जोरदार हवा आंधी के साथ बारिश के हुई ओलावृष्टि ने हरिया के अलावा गांव के अन्य किसानों की गेहूं की फसल भी तहस -नहस कर दी और हरिया के सपने एक ही पल में चकनाचूर हो गए. ओलावृष्टि के चार दिन हलके का पटवारी गांव पहुंचा होने वाली हानि का आकलन कर ले गया. हरिया को लगने लगा था कि पूरे खेत में खड़ी फसल का नुकसान हुआ है, तो सरकार इतना मुआवजा तो दे देगी कि सहकारी समिति का कर्ज तो चुक जाएगा. रहा सवाल बेटी की शादी का तो कुछ रुपया शहर के साहुकार से ब्याज पर और कुछ रिश्तेदारों से आर्थिक मदद लेकर उसकी शादी कर ही देगा.

लंबे इंतजार के बाद जब कल सुबह जब पटवारी ने मुआवजे के तौर पर मात्र 39 रुपए का मुआवजा पत्रक दिया तो हरिया की आँखों के सामने तारे नाचने लगे.वह सिर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया.गांव के किसानों ने जब पटवारी से इतना कम मुआवजा मिलने का कारण पूछा तो पटवारी बोला कि सरकार ने नुकसान का आकलन अनावारी के हिसाब से हर खेत के हिसाब से नहीं बल्कि गांव के हिसाब से किया है. जिस किसान का जितना रकबा है उसी हिसाब से गणना की गई है.हरिया के पास सिर्फ तीन बीघा ज़मीन थी. इसलिए उसे उतना ही मुआवजा मिला.

पटवारी के जाने के बाद हरिया दिन भर उदास रहा. पत्नी जानकी ने उसे खाने में मक्का की रोटी और लाल मिर्च का मसाला दिया. लेकिन हरिया का मन खाने में नहीं लगा.वह तालीम पर से उठ गया और घर के सामने वाले पेड़ के नीचे खटिया पर अलसाता रहा. हरिया के मन में चिंताओं के बादल घिर आए थे.कर्ज के अलावा बेटी की शादी की चिंता ने उसे बेचैन कर दिया. इसी उधेड़बुन में रात हो गई . बैलों को चारा डालकर वह घर से निकलने लगा तो बेटी राधा ने पूछा भी कि बाबा कहाँ जारहे हो.खाना खा लो. आपने सुबह भी कुछ नहीं खाया था. लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया और निकल गया. जब देर रात तक हरिया घर नही लौटा तो पडोसी मांगीलाल ने गांव के कुछ लोगों को साथ लेकर हरिया की खोजबीन शुरू की.गांव में नाले के पास वाले पेड़ पर हरिया लटका हुआ पाया गया. उसने अपने ही साफे को गले में लपेटकर फांसी लगा ली थी. सरकारी व्यवस्थाओं ने एक व्यक्ति जिंदगी खत्म कर दी.

वस्तुतः यह सिर्फ हरिया की ही कहानी नहीं है.पूरे देश में किसान फसल ख़राब होने और कर्ज की चिंता में प्रति वर्ष दस हजार किसान आत्महत्या कर रहे हैं.1990 में महाराष्ट्र के विदर्भ से शुरू हुआ ख़ुदकुशी का यह सिलसिला अब भी जारी है. देश का 70 फीसदी हिस्सा कृषि प्रधान होने के बावजूद किसानों की यह दुर्दशा असहनीय है. लगता है मुंशी प्रेमचन्द के 'गोदान'के पात्र अब भी जिन्दा हैं. प्रकृति पर निर्भर रहने वाला किसान मेहनत करने के बाद भी दुखी है .इससे देश की अर्थ व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है.देश की राज्य सरकारें भी किसानों को मात्र मोहरे समझती है. प्राकृतिक आपदा पर मिलने वाला मुआवजा जले पर नमक छिड़कने जैसा है. उधर किसानों के हित के लिए बने संगठन भी सरकारों की हाँ में हाँ मिलाते हुए सुविधाएं दिलाने का ढोंग करते हैं. इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी कि मेहनत करने वाले किसानों को अभी तक अपनी फसल का मूल्य तय करने का अधिकार नहीं मिला है.अन्नदाता की आँखों में अब भी आंसू हैं.

सच तो यह है कि किसानों को कृषि शिक्षा,भूमि प्रबन्धन,भूमि अधिग्रहण नीति, साख प्रबन्धन जैसी कई सुविधाओं से नौकशाहों द्वारा वंचित रखा जा रहा है.देश के राजनीतिक दल भी किसानों का दोहन ही करते हैं. पिछले साल दिल्ली में आम आदमी पार्टी की एक सभा का वह दृश्य आपको याद होगा जिसमें सभा स्थल के सामने एक पेड़ पर एक किसान ने ख़ुदकुशी कर ली थी लेकिन कोई नेता घटना स्थल पर नही पहुंचा था और सभा निरंतर जारी थी. वह भी तब जब इलेक्ट्रानिक मीडिया किसान के पूरे घटनाक्रम को दिखा रहा था.

चौधरी मीरसिह के यहां 23 दिसंबर 1902 को जन्में चौधरी चरण सिंह पूर्वदृष्टा थे.वे हमेशा किसानों की समस्या को लेकर आंदोलन किया करते थे.वे राजनीति में भी कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते थे.उनकी छवि एक किसान नेता के रूप में ही थी.मार्च 1977 में इंदिरा सरकार के पतन के बाद जनता पार्टी की सरकार में चौधरी चरण सिंह गृह मंत्री थे. बाद में जनता सरकार में दलों में मची हलचल ने मोरारजी सरकार को गिरा दिया. बाद में कांग्रेस के समर्थन से 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह देश के पांचवे प्रधान मंत्री बने.किसानों के सच्चे हितैषी चरण सिंह के निधन के बाद उनकी जयंती पर 2001 से किसान दिवस की शुरुआत की गई.जो उनका पावन स्मरण है.किसान दिवस का उद्देश्य किसानों के प्रति जनता और सरकार को जागरूक करना है.लाख परेशानियों के बाद भी देश का किसान सब के भले की सोचता है.एक शेर मौजूं है जो किसानों के भावों को अभिव्यक्त करता है -

                      छत टपकती है उसके कच्चे घर की, वो किसान फिर भी बारिश की दुआ मांगता है .

- मोहन जोशी

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