अब नजर नहीं आते खरमोर, विलुप्त हो रही कई प्रजातियां
अब नजर नहीं आते खरमोर, विलुप्त हो रही कई प्रजातियां
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नील हर रोज़ सुबह जल्दी उठ जाती है। वह फ्रेश होने के बाद कुछ योग और एक्सरसाईज़ करती है और फिर कुछ देर रिलेक्स होकर बालकनी में बैठकर उन्मुक्त बहने वाली ताजी हवा का आनंद लेती है। इस दौरान वह अखबार पढ़ती है तो चाय की चुस्कियों के साथ प्रकृति की उस शांति का आनंद भी लेती है मगर उसके आनंद का रंग कुछ फीका पड़ गया है। भला वो क्यों।

जी हां वह इसलिए कि पहले जब वह हर दिन बालकनी में बैठा करती थी तो पास के ही बाग से उसे गर्मियों के मौसम में मोर और कोयल की आवाज़ें सुनाई पड़ती थीं ये आवाज़ें बेहद सुंदर लगती थीं और वातावरण की शांति में एक मधुर रस घोल देती थीं कानों में इन आवाज़ों के पड़ते ही मन आनंदित हो उठता था और उसे और अधिक ताज़गी लगा करती थी लेकिन अब न तो यहां मोर ही दिखलाई पड़ते हैं और न ही मोर की आवाज़ आती है।

कोयल की आवाज़ भी अब नहीं सुनाई पड़ती। आखिर यह कैसे हुआ। दरअसल यह एक काल्पनिक कहानी है लेकिन इसके माध्यम से हम आपको सारी स्थितियों से अवगत करवाना चाहते हैं। यह सब हुआ है मानव द्वारा पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाने से। अब आप सोच रहे होंगे कि मानव पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा रहा है ऐसे में कई प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर है। आप यह भी विचार कर रहे होंगे कि आपके द्वारा पौधारोपण कार्यक्रम में सहभागिता की जाती है, जरूरत न होने पर आप पैदल चलने या साइकिल पर सवारी करने का प्रयास करते होंगे लेकिन इसके बाद भी आप यही सोच रहे होंगे कि आखिर पर्यावरण में संतुलन क्यों नहीं बन पा रहा है क्यों अधिक गर्मी का अनुभव प्रतिवर्ष होता जाता है

प्रतिवर्ष मौसम में तापमान में बढ़ोतरी क्यों होती जाती है। दरअसल जिस प्रतिशत में पारिस्थितिक का संतुलन आवश्यक है हमने उससे कहीं अधिक उसे असंतुलित कर दिया है। मानव के क्रियाकलापों के कारण ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव इतना अधिक हो गया है कि पारिस्थितिकी को संतुलित करने के लिए हमें तेजी से बड़े पैमाने पर प्रयास करने की जरूरत है। हालात ये हैं कि आज खरमोर जैसी प्रजाति लुप्तप्राय हो गई है। खरमोर एक बेहद सुंदर पक्षी होता है जो कि दो पैरों पर चलता है। इसके सिर पर मोर की तरह आकृति बनी होेने के कारण इसे खरमोर कहा जाता है।

खरमोर खेतों में लहलहाती फसलों के बीच जब अपने पंख फैलाकर उड़ानभरता है तो यह दृश्य और सुंदर लगता है। यह पक्षी फसलों का नुकसान नहीं करता बल्कि यह तो किसानों का मित्र होता है। यह फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली कीटों को अपना आहार बनाता है मगर खेतों में उपयोग किए जाने वाले पेस्टिसाईडस और रासायनिक खाद के कारण अब यह प्रजाति खतरे में आ गई है कई पक्षी हानिकारक रसायन के प्रभाव के चलते दम तोड़ चुके हैं। इतना ही नहीं आपने गौर किया होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में या किसी शहर की सीमा के आसपास कई बार शेर और चीते पहुंच जाते हैं।

इन्हें पकड़ने के लिए हड़कंप मच जाता है और फिर इन पर ट्रेक्वेंलाईज़र का उपयोग कर पिंजरे में बंद करना पड़ता है। यह काफी दहशतभरा होता है। कई बार तो लोग दहशत के कारण चीतों की जान तक ले लेते हैं। घबराया चीता जंगल कटने से शहर की सीमा में आ जाता है तो यहां उसे हर कहीं इंसान और उनका बनाया जाल नज़र आता है।

बाघ और अन्य जानवरों का शिकार भी बड़े पैमाने पर होता है। इनके नखों, चमड़े और अन्य महत्व से इन्हें मार दिया जाता है ऐसे में इन प्रजातियों पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। हालांकि इनके संरक्षण के लिए नियम बनाए गए हैं लेकिन नियमों की जटिलता में वन्यजीव संरक्षण उलझकर रह जाता है और मानव खुद ही अपनी पारिस्थितिकी को बिगाड़ देता है।

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