करवा पूजन पर पड़ता संस्कृति के मेल का असर
करवा पूजन पर पड़ता संस्कृति के मेल का असर
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कहा जाता है कि भारतीय संस्कृति में लोच है। भारत को कविवर रविंद्रनाथ टैगोर ने भी महामानवों का समुद्र कहा है। दरअसल भारत अपने में कई सभ्यताओं और संस्कृतियों को समेटे हुए हैं। इसका असर हमारे तीज त्यौहार पर नज़र आता है। इतना ही नहीं भारतीय शिल्पकला, भारतीय खान - पान, भाषा, बोली और पहनावे पर भी यह सब नज़र आता है। ऐसे में करवा चौथ पूजन के दौरान यह सब कैसे नज़र नहीं आए।

दरअसल करवा चौथ पर्व आज भी परंपरागत तरीके से मनाया जाता है लेकिन महिलाओं द्वारा इस दिन के लिए विशेषतौर पर श्रृंगार किया जाता है। पहले जहां महिलाऐं इस दिन के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर रहती थीं और महिलाऐं अधिक सज - संवरती नहीं थीं तो ऐसे में आज महिलाओं का अधिकांश समय सजने संवरने में जाता है। अब महिलाऐं आधुनिक जीवन शैली को अपनाते हुए काॅस्मेटिक्स का उपयोग कर अपना सौंदर्य निखारने में लगी रहती हैं अब करवाचौथ केवल व्रत और पूजन भर नहीं रह गया है

यह सामाजिक मेल - मिलाप का पर्व भी हो गया है। महिलाऐं एक साथ एकत्रित होती हैं और पूजन के साथ अपना मनोरंजन भी करती हैं साथ ही इस माध्यम से महिलाओं को अपनी प्रतिभा निखारने का एक मंच भी मिलता है। जो महिलाऐं घर की दहलीज तक सिमटी रहती हैं उन्हें अपने ही जैसी महिलाओं के बीच कुछ पल बिताने का अवसर मिलता है जो उनके मन को खुशी देता है।

'लव गडकरी'

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