कब बुझेगी ’बर्फ की आग’
कब बुझेगी ’बर्फ की आग’
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भारत के चेहते और जिसके लिये पाकिस्तान हमेशा से ही लालायित रहा है, उस ’बर्फ’ की आग कब तक बुझेगी ! इसका जवाब फिलहाल न संभवतः किसी के पास नहीं है। हम यहां बात कर रहे है कश्मीर की, जिसके हालात एक माह से अधिक समय से बिगड़े पड़े हुये है। कभी कश्मीर की वादियों में ’कश्मीर की कली’ चहकती थी तो कभी कश्मीर की घाटियों में पनपने वाले केसर की महक से भारत ही नहीं बल्कि अन्य देश भी अछूते नहीं रहा करते थे। लोग गर्मी का अवकाश व्यतीत करने के लिये कश्मीर को ही प्राथमिकता दिया करते थे, लेकिन बीते कुछ वर्षों से कश्मीर सिर्फ और सिर्फ आतंक और अलगाव का केन्द्र बनकर रह गया है। 

कभी आतंकवादियो से लोहा लेते हुये हमारे जाबांज सैनिक शहीद हो जाते है तो कभी नापाक पाकिस्तान के सैनिकों की गोलीबारी का जवाब देते हुये सैनिक जान गंवा बैठते है तो कभी किसी आतंकवादी की मौत के बाद हिंसा उपज जाती है। कुल मिलाकर अब वह कश्मीर नहीं रह गया है, जो असरे पूर्व हुआ करता था। एक जमाना था जब बालीवुड के कलाकारों की पहली पसंद कश्मीर हुआ करती थी, न जाने कितनी फिल्मे, कश्मीर की वादियों में दृश्यांकित हुई। बर्फ की चादरों से ढंकी घाटियां  और वादियों में लहलाते-इठलाते फूलों की महक लोगों को आकर्षित किया करती थी तो वहीं झीलों की लहरों में हिचकोले खाते शिकारों में बैठने का आनंद ही कुछ अलग हुआ करता था,

परंतु अब यह सब लगता है कि बीते जमाने की बात हो गई है क्योकि वहां के ही लोग अब निरंतर होने वाली घटनाओं से परेशान हो गये है तो फिर भारत के अन्य क्षेत्रों या विदेशों के लोगों की तो दूर की बात हो गई है कि वहां जाने की भी सोचे। रही बात अमरनाथ या वैष्णो देवी की धार्मिक यात्राओं की तो, यात्रियों की संख्या कम इसलिये होने लगी है कि कौन जानबुझकर खतरा मोल ले। खैर यदि वर्तमान समय की बात की जायें तो आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद जिस तरह से वहां के हालात बेकाबू हुये है, वह दुःखद तो है ही, हमारी छबि भी विश्व के अन्य देशों में बिगड़ने लगी है कि क्या कश्मीर की समस्या का हल नहीं किया जा सकता। 

यह बात अलग है कि केन्द्र सरकार तो कश्मीर की समस्या हल करने का प्रयास कर ही रही है वहीं हाल ही के दिनों में कश्मीर के राजनीतिक दल भी चिंता जाहिर करने लगे है। जिस तरह से वर्तमान में स्थिति बिगड़ी पड़ी हुई है, उससे कश्मीर का हित देखने वालों को चिंता में पड़ना तो स्वाभाविक ही था। राजनीतिक ढंग से ही हो सकती है कश्मीर की समस्या दूर, इस बात की जीद विभिन्न राजनीतिक दलों ने पकड़ ली है, परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या यह इतना  सरल है। वहां के युवाओं को बरगलाया जा रहा है, दिलो-दिमाग पर ऐसी बातें बैठाई जा रही है कि सिवाय विरोध या ’आजादी’ के सिवाय कुछ सुझता नहीं। 

आवश्यकता इस बात की है कि तह में जाकर समस्या को देखा जाये और इस बात पर विचार किया जाये कि आखिर ’बर्फ की आग’ को कैसे और कितनी जल्दी ठंडा किया जाये। कश्मीर के घाव पर मरहम लगाने के लिये राजनाथ सिंह को भेजा गया है, अब देखना यह है कि दो दिनों के भीतर वे घाव को भरने का काम करते है अथवा नहीं। यर्थाथ के धरातल पर वहां की समस्या का निपटारा करने की जरूरत है, न कि राजनीति खेलने की। एक जाजम पर आकर, समस्या का हल यदि खोजा जायें तो कोई बड़ी बात नहीं कि कश्मीर का पुराना दौर वापस लौट आये। - शीतलकुमार ’अक्षय’

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