मायावती और अखिलेश के समक्ष राजनीतिक भविष्य बचाने की चुनौती
मायावती और अखिलेश के समक्ष राजनीतिक भविष्य बचाने की चुनौती
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नई दिल्ली : यूपी विधान सभा चुनाव में मिली करारी हार से मायावती इसलिए ज्यादा बिलबिला रही है क्योंकि उनके सामने राज्य सभा का सदस्य बनना तक मुश्किल हो गया है.अब मायावती के लिए दिल्ली दूर की कौड़ी नजर आ रही है.यही हाल अखिलेश यादव का भी है. राजनीति बचाने के लिए अखिलेश के सामने भी राज्य सभा सदस्य बनने का ही विकल्प बचा है. यूपी के दो बड़े नेताओं के समक्ष राजनीतिक भविष्य बचाने की चुनौती है.

गौरतलब है कि 2014 के लोक सभा चुनाव में शून्य पर सिमटी बीएसपी का प्रदर्शन विधानसभा चुनावों में भी निराशाजनक ही रहा. अभी तो स्थिति यह है कि मायावती का राज्य सभा सदस्य बनना तक मुश्किल लग रहा है. इस बार के चुनाव में बीएसपी को केवल 19 सीटें ही मिली हैं, इस कारण उनका राज्य सभा सदस्य बनना मुश्किल है, क्योंकि चुनावी प्रावधानों के हिसाब से राज्यसभा सदस्य बनने के लिए बसपा के पास पर्याप्त विधायक नहीं हैं.अगर मायावती की पार्टी बसपा , अपनी धुर विरोधी सपा के साथ गठबंधन कर लेती है तो मायावती के राज्यसभा सदस्य बनने का रास्ता खुल सकता है , लेकिन ऐसा होगा या नहीं भविष्य के गर्भ में छुपा है.

यही हाल समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव का भी है. राजनीति बचाने के लिए अखिलेश के सामने भी राज्य सभा सदस्य बनने का ही विकल्प बचा है. हालांकि उन्हें इसके लिए 2018 तक का इंतजार करना होगा, अभी अखिलेश यादव विधान परिषद के सदस्य हैं.अगर सपा और बसपा गठबंधन कर लेती हैं तो दोनों अपना एक-एक सदस्य राज्यसभा में भेज सकती हैं. अखिलेश के सामने राज्य सभा सदस्य बनने के अलावा विपक्ष का नेता बनने की भी चुनौती है. चाचा शिवपाल और आजम खान के भी जीत जाने से यूपी विधानसभा में विपक्ष का नेता बनने की राह भी आसान नहीं रही है.

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