अरूणाचल से हटना ही चीन के लिए होगा बेहतर
अरूणाचल से हटना ही चीन के लिए होगा बेहतर
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कश्मीर और आतंकवाद के मसले को लेकर भारत और चीन के बीच विवाद क्या गहराया। दोनों देशों की सीमाओं पर बंदूकें क्या तन गईं बस चीन को मौका मिल गया। जी हां, चीन। वह देश जो भारत के साथ हमेशा से ही दोहरी नीति अपनाता रहा है। चाहे न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत के समर्थन से मुकरने की बात हो या फिर आतंकवाद के मसले पर बात हो चीन पाकिस्तान का ही साथ देता रहा है। कूटनीतिक तौर पर तो चीन ने यह जता दिया कि यदि पाकिस्तान पर किसी बाहरी शक्ति द्वारा हमला हो तो वह पाकिस्तान का साथ देगा।

यहां किसी बाहरी शक्ति से चीन का अप्रत्यक्ष मतलब भारत से ही था। तो दूसरी ओर चीन ने फिर अरूणाचल प्रदेश में भारत के सीमा क्षेत्र में दाखिल होकर वहां अपन अपने कैंप लगा दिए। आखिर चीन क्या जताना चाहता है। चीन बार बार अरूणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताकर भारत से सीमा विवाद करता है। हालांकि चीन इस मसले पर सामरिक तौर पर आगे नहीं बढ़ पाता लेकिन भारतीय सीमाओं में दाखिल होकर वह भारत को उकसाने का प्रयत्न जरूर करता है।

चीन मैक मोहन रेखा जो कि वास्तविक नियंत्रण रेखा जिसे लाईन आॅफ एक्च्युअल कंट्रोल कहा जाता है। इस तरह से चीन इस सीमा का उल्लंघन करता आया है। दरअसल चीन चाहता है कि वह भारत के क्षेत्र को धीरे से अपनी फौजी ताकत तैनात कर हथिया ले मगर शांति के दूत भारत के कदमों के चलते उसे पीछे हटना पड़ता है। जिसके चलते चीन पाकिस्तान को समर्थन देकर कूटनीतिक तरह से अपना हित साधने में लगा रहता है।

मगर चीन के इस तरह के प्रयास अधिक समय तक चलने वाले नहीं है। वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान एक आतंकप्रेरित राष्ट्र नज़र आ रहा हैं ऐसे में चीन का पाकिस्तान की ओर झुकाव उसी के लिए परेशानी भरा हो सकता है। दूसरी ओर यदि चीन भारतीय सीमा में दाखिल होने का प्रयास करेगा तो अब उसे कई मसलों पर भारत के विरोध का सामना करना होगा। ऐसे में चीन के हर प्रयास नाकाम नज़र आते हैं।

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'लव गडकरी'​

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