नोटबंदी के बाद रिश्वत का बाजार भी ठंडा पड़ा
नोटबंदी के बाद रिश्वत का बाजार भी ठंडा पड़ा
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जब से देशभर में 500 व 1000 के नोटो पर बंदिश लगाई गई है तब से आमजनता तो हेैरत में है ही लेकिन रिश्वत लेने वाले भी इस नोट बंदी सेे कम परेशान नहीं है। वह रिश्वत किस रुप में ले यह समस्या उनके सामने उत्पन्न हो गई है जिसके कारण रिश्वत का बाजार अभी ठंडा पड़ा हुआ है।

लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी कम नहीं होगी बल्कि इसमें इजाफा ही होगा क्योंकि कई अधिकारी जिनके पास काफी मात्रा में काला धन है और उन्हें नोटबंदी से काफी नुकसान हुआ हैए इसकी पूर्ति अधिकारीए कर्मचारी करेंगे ही और ऐसे में लोगों को अधिकारियों और इस्पेक्टर राज का और अधिक शिकार होना पड़ेगा।

रिश्वत लेने वालों की कमी नहीं

शासन का शायद ही कोई विभाग हो जहां लेन.देन के बिना काम न होता हो। कई  रिश्वत लेते हुए पकड़े गए और नोटबंदी के बाद भी रिश्वत लेने वालों की कमी नहीं हुई है फिर भी अधिकारी कर्मच़ारी रिश्वत लेने में डर रह है । क्योंकि 500 व 1000 के नोट तो उन्हें मिलने से रहे। 2000 व 500 के नोट अभी इतने प्रचलन में नहीं है और छोटे नोट रिश्वत के रुप में देने के लिए लोगों के पास नहीं है। इस कारण कई मामले अधिकारी कर्मचारियों द्वारा लंबित कर दिए गए है या उनकी तारीखे आगे बड़ा दी गई है। एक भुग्त भोगी व्यक्ति ने बताया कि सर्वाधिक रिश्वतखोरी राजस्व मामलों में नीचे से उपर तक हो रही है। शायद ही कोई अधिकारी कर्मचारी अपवाद स्वरुप इस विभाग का होगा जो बिना लिए काम करता हो।

राजस्व विभाग भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा केंद्र 

जहां जमीन की नपती नामांतरण और ऐसे ही अनेक मामले इससे जुड़े हुए हैए जहां ग्रामीण व शहरी लोगों का काम अक्सर इस विभाग से पड़ता ही है। वसूली पर भी पड़ेगा प्रभाव नोटबंदी के कारण सरकारी वसूली पर भी प्रभाव पड़ा है। लोगों का कहना है कि मार्च तक यदि यही स्थिति बनी रही तो विभिन्न विभागों के लक्ष्य की पूर्ति कैसे होगी। जबकि उन्हें 31 मार्च तक राजस्व वसूली के आंकड़े की पूर्ति करना होती है और इसी अवधि में मिले बजट को भी समाप्त करना पड़ता है  लेकिन बाजार की स्थिति को देखते हुए यह दोनों ही अपनी पूर्ति कर पाएंगे इसमें आशंका ही है लेकिन फिर भी अधिकारी  कर्मचारी 31 मार्च तक मिले अलाटमेंट को एन.केन प्रकारण समाप्त करने का प्रयास करते है लेकिन उनमें यह भय भी है कि वह इसे प्रदर्शित कैसे करेंगे।

जिला सहकारी बैंकों के सामने खतरा

जिला सहकारी बैंक में भी 500 व 1000 के नोट स्वीकार नहीं किए जा रहे है  जहां करोड़ों रुपए का लोन इन बैंकों ने किसानों को दे रखा है। यदि वसूली नहीं हुई तो एनपीए भी बढऩे की संभावना है जो बैंकिंग इंडस्ट्रीज के लिए सबसे खतरनाक माना जाता है। सबसे ज्यादा परेशानी किसानों को सोसाईटियों व इस बैंक शाखा में हो रही है जहां वसूली ही जमा नहीं हो पा रही है। जब छोटे नोटो का प्रचलन होगा तब ही वसूली जमा होगी। खाद.बीज के लिए भी लोगों को परेशानी हो रही है। हालांकि केंद्र सरकार ने नाबार्ड के जरिए खाद बीज उपलब्ध करवाने के लिए पैसे दिए जाने की घोषणा की है लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई प्रगति नजर नहीं आ रही है।

अधिकारियों से भी पूछताछ की जाए

जहां तक सरकारी कार्यालयों में रिश्वतखोरी का मामला है उसे ही लेकर पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने प्रश्न उठाया है कि हर बार जनप्रतिनिधियों पर ही एकाउन्ट के मामले में गाज गिरती है बैंक खाते को लेकर पूछताछ की जाती है लेकिन अधिकारियों की खेर खबर नहीं ली जातीए जबकि वे कितना भ्रष्टाचार करते है और यह भ्रष्टाचार लाखों करोड़ों में होता हैएलेकिन कभी उन पर हाथ डालने का कोई प्रयास नहीं करता । वे केवल उस समय प्रकाश में आते है जब रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों पकड़े जाते है। 

खरीदे गए सोने की जांच हो

सर्राफा बाजार में यदि व्यापक जांच की जाए तो नोटबंदी के बाद सोने के भाव में उतार.चढ़ाव भ्रष्टाचार के ही कारण घटा.बड़ा हैए जिसका कारण यह भी है कि अधिकारियों ने जमकर सोना खरीदाए इसमें इक्का.दुक्का नेता भी हो सकते हैए लेकिन अधिकारीए कर्मचारियों का यह आंकड़ा काफी बड़ा है। रतलाम सर्राफा बाजार में तीन.चार बड़े व्यापारी हैए जिनका करोड़ों.अरबों रुपए में व्यापार है और वे हमेशा चर्चाओं में रहे भी है। कहते है ऐसे भी सर्राफा व्यापारियों के यहां नोटबंदी के प्रारंभिक दिनों में जमकर सोना खरीदा गया। रातो.रात सोने के भाव में तेजी आ गई और हजार.पांचसौ के नोट प्राप्त कर सोना बेचा गया।

चर्चा यह भी रही कि 20 से 30 प्रतिशत कम में 1000.500 के नोट कतिपय व्यापारियों द्वारा लिए गए। कई लोगों ने इस संबंध में पुष्ठि करने का भी प्रयास कियाए लेकिन कोई यह बताने को तैयार नहीं कि इस प्रकार का गौरखधंधा कौन.कौन व्यापारी कर रहे थे लेकिन करोड़ों रुपए जिन अधिकारी नेताओं के पास है उन्होंने रातो.रात बड़े नोटो को ठिकाने लगाने के लिए अपने हितेषियों को मोर्चे बंदी पर लगा दिया ताकि वे इनके बदले दूसरी करंसी प्राप्त करें अथवा उनके बदले सोना खरीदे। अनुमान के तौर पर करोड़ों रुपयों का सोना किलो के रुप में खरीदा गया।                         

-शरद जोशी

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