Sep 29 2016 02:43 PM
सूती-रेशमी धागों में उभरे बेलबूटे की श्रृंखलाबद्ध अंतहीन कारीगरी ही ज़री है | पुराने ज़माने में सोने - चांदी के तारो से कपडे पर की गयी खूबसूरत कारीगरी वैभव और विलासिता का प्रतिक थी | फिर वक़्त बदला सोने-चांदी की जगह पर रेशमी चमकीले धागों ने ले ली, पर लोगो का ज़री के प्रति आकर्षण जस की तस रहा |
इस तरह ज़री की कारीगरी कालजयी हो गयी | मौका चाहे शादी ब्याह का हो या फिर त्योहारो का, भारतीय उलास की अभिव्यक्ति नये वस्त्र पर ज़री शगुन की पहली ज़रूरत है |
शताब्दियों से भारतियों का ज़री से रिश्ता अब विरासत बन चूका है | पारंपरिक परिधानों के अलावा भी आज के मॉडर्न कपड़ो पर भी ज़री खूब फब्ती है | ज़री किसी भी कपड़ो को खास बना सकती है, और ऐसी खासियत की वजह से जरी वक़्त की भी पहली पसंद बन गयी है | आइये सैर करते है ज़री के अनोखे संसार की..|
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