खाली बोतलों से भला, सुरा के सुरेंद्रों का क्या काम!
खाली बोतलों से भला, सुरा के सुरेंद्रों का क्या काम!
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आपने अक्सर शराब के अहातों के आसपास लोगों की जमा भीड़ को देखा होगा। कभी कभी इनमें से कुछ लोगों को बतियाते हुए या फिर आपसे कुछ कहते हुए भी आपने सुना होगा। इनकी बातें और लहराती बाॅडी लैंग्वेज आपको बेहद आश्चर्य से भर देती होगी। कभी कभी आपको ऐसी स्थितियों पर हंसी भी आती होगी। मगर आपको लगता होगा कि जो लोग यहां आपको मिले वे अपने घर तक बिल्कुल ठीक तरह से पहुंच जाए तो ईश्वर की एक बड़ी कृपा हो।

तो कभी आप अपनी नाक पर हाथ रखते हुए वहां से निकलते होंगे। जी हां, हम बात कर रहे हैं। मयखानों में कदम रखने वालों की। बिहार में शराबबंदी का नियम लागू हो गया तो धीरे धीरे अन्य राज्य भी इसकी पहल करने लगे। कहीं कहीं तो महिलाओं ने मोर्चा संभाला और शराब की दुकानों पर पहुंचकर ताले डाल दिए। कई राज्यों में बिहार के बाबू सीएम नीतिश कुमार की सराहना हुई। मगर कुछ राज्य ऐसे थे जहां शराबबंदी पर चर्चा हुई लेकिन बड़े पैमाने पर राजस्व की प्राप्ति होने से इस पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सका। मगर शराबखोरी का यह धंधा शैक्षणिक परिसरों के आसपास और रिहायशी क्षेत्रों के करीब ठियों में बदल गया है।

ऐसे में कई लोगों को परेशानी होती है। कई रिहायशी क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर शराब और मांस के प्रतिष्ठानों की भरमार हो जाती है एक तरह से यहां पर इस तरह की सामग्री की मंडी ही बन जाती है मगर जिम्मेदार इस पर आंख मूंद लेते हैं। जहां नियम है कि शैक्षणिक परिसरों और रिहायशी क्षेत्रों के तय दायरे में इस तरह की सामग्री का विक्रय नहीं हो सकता है लेकिन इसके बाद भी इसका विक्रय हो रहा है। अब इस मामले में जिम्मेदारों को पहल करनी होगी।

कुछ स्थान ऐसे हैं जहां पर प्रतिबंध के बाद भी हाईवे पर शराब परोसी जा रही है। ऐसे में शराब का सेवन कर वाहन चलाने और इससे लोगों के दुर्घटनाग्रस्त होने का अंदेशा बना रहता है। मगर जहां पर शराब की दुकानों को बंद करवा दिया गया है या फिर शराबखोरी को बंद कर दिया गया है वहां पर अब सुकून है, आर्थिक प्रगति और खुशहाली के नए रास्ते हैं। उजले भविष्य की ओर आगे बढ़ता जीवन है। सच है आखिर भला यहां सुरा के सुरेंद्रों से किसे सरोकार है। खाली बोतलें अब टूट चुकी हैं भोर हो गई है और लोग नए कल के लिए जाग गए हैं।

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