"बहु" जो माँ मन भाए
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हमारे सामने कई बार आसपड़ोस के कुछ ऐसे किस्से आ जाते है जिन्हे देखकर ना चाहते हुए भी रिश्तो को लेकर मन में कुछ सवाल पैदा हो जाते है. कभी यह रिश्ता माँ-बेटे का होता है तो कभी बात बहु-सास के रिश्ते पर जाकर अटक जाती है. इन सब बातो में एक जो सबसे कॉमन बात होती है वह है बच्चे की शादी के बाद माँ का साथ रहना...जी हाँ, बेटा माँ को अपने साथ रखेगा या नहीं ? बाते यही जाकर उलझ जाती है. आज भी हमारे सामने एक ऐसी ही बात आई है. यह बात है बेटे और बहु के बीच की. लेकिन यकीन कीजिए आप भी इसे पढ़कर विभोर हो उठेंगे. चलिए पढ़िए:

बेटा-बहु अपने बैडरूम में बातें कर रहे थे. द्वार खुला होने के कारण उनकी आवाजें बाहर कमरे में बैठी माँ को भी सुनाई दे रहीं थीं.

बेटा - अपनी नौकरी के कारण हम माँ का ध्यान नहीं रख पाएँगे, उनकी देखभाल कौन करेगा ? क्यूँ ना, उन्हें वृद्धाश्रम में दाखिल करा दें, वहाँ उनकी देखभाल भी होगी और हम भी कभी-कभी उनसे मिलते रहेंगे. बेटे की बात पर बहु ने जो कहा, उसे सुनकर माँ की आँखों में आँसू आ गए.

बहु - पैसे कमाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है जी, लेकिन माँ का आशीष जितना भी मिले, वो कम है. उनके लिए पैसों से ज्यादा हमारा संग-साथ जरूरी है. मैं अगर नौकरी ना करूँ तो कोई बहुत अधिक नुकसान नहीं होगा. मैं तो माँ के साथ रहूँगी, घर पर ही टयूशन पढ़ाऊँगी, इससे में माँ की देखभाल भी कर पाऊँगी. याद करो, तुम्हारे बचपन में ही तुम्हारे पिता नहीं रहे और घरेलू काम धाम करके तुम्हारी माँ ने तुम्हारा पालन पोषण किया, तुम्हें पढ़ाया लिखाया और तुम्हे इस काबिल बनाया, की तुम अपने पाँव पर खड़े हो पाये और आज जो कुछ हो उनकी त्याग और तपस्या के कारण हो, तब उन्होंने कभी भी पड़ोसन के पास तक नहीं छोड़ा, कारण तुम्हारी देखभाल कोई दूसरा अच्छी तरह नहीं करेगा, और तुम आज ऐंसा बोल रहे हो. तुम कुछ भी कहो, लेकिन माँ हमारे ही पास रहेंगी, हमेशा, अंत तक.

बहु की उपरोक्त बातें सुन, माँ रोने लगती है और रोती हुई ही, पूजा घर में पहुँचती है. ईश्वर के सामने खड़े होकर माँ उनका आभार मानती है.

और उनसे कहती है - भगवान, तुमने मुझे बेटी नहीं दी, इस वजह से कितनी ही बार मैं तुम्हे भला बुरा कहती रहती थी, लेकिन ऐसी भाग्यलक्ष्मी देने के लिए तुम्हारा आभार मैं किस तरह मानूँ ? ऐंसी बहु पाकर, मेरा तो जीवन सफल हो गया, प्रभु.

यह तो एक कहानी है लेकिन क्या असल जीवन में ऐसा होता है? होता है, लेकिन हर जगह नहीं... आखिर ऐसा क्यों ? क्या एक बहु का फर्ज नहीं है कि वह अपनी सास को एक माँ की तरह ही रखे या एक बेटे का यह फर्ज नहीं होता कि वह शादी के बाद भी माँ को अपने साथ ख़ुशी ख़ुशी रखे. फर्ज तो एक माँ को भी यही कहता है कि वह अपनी बहु को एक बेटी की तरह ही प्यार दे. लेकिन क्या यह सब समाज में हो पाता है. खुद ही सोचिए और विचार कीजिए कि यदि ऐसा हो तो हर परिवार कितना सूंदर और खुश रहेगा. अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी तो शेयर करना ना भूले.

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