जहाँ चारों तरफ भ्रम ही भ्रम है
जहाँ चारों तरफ भ्रम ही भ्रम है
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ईश्वर का प्रकटीकरण हमारे घट भीतर होगा तभी वास्तव में अध्यात्म द्वारा मानव की सद्शक्तियां पुनः जागृत हो पायेगी! मानव स्वयं वास्तव में पवित्र है किन्तु विषयों का संग उस पर दुष्प्रवृतियों की परत चढ़ा देता है। हमारे महापुरुषों ने इस संसार को मिथ्या कह कर संबोधित किया जहाँ चारों तरफ भ्रम ही भ्रम है।

यही सदा से समय की मांग भी रही है लेकिन भौतिकवाद में डूबा मानव सदा से ही संसार को जानना चाहता है। हम स्वयं से अनजान हैं कि हम कौन हैं, कहां से आए हैं, इत्यादि प्रश्नों का हल हमारे पास नहीं है किन्तु मात्र संसार के ज्ञान से ही हम महानता के शिखर को छूना चाह रहे हैं जो हमारे जीवन का एक बहुत बड़ा भ्रम है। अध्यात्म हमारे भ्रम को तोड़ता है और हमें सत्य की अनुभूति करवाता है। यह सत्य कहीं बाहर नहीं अपितु हमारे भीतर ही है और उसका दिव्य प्रकाश भी हमारे भीतर प्रकट होता है।

हमारे महापुरुषों ने इस संसार को मिथ्या कह कर संबोधित किया जहाँ चारों तरफ भ्रम ही भ्रम है। आगे उन्होंने कहा कि इस मानव देह का लक्ष्य उस परमात्मा को प्राप्त करना है, जब हम उस अध्यात्म से जुड़ जाएगे, ईश्वर का प्रकटीकरण हमारे घट भीतर होगा तभी वास्तव में अध्यात्म द्वारा मानव की सद्शक्तियां पुनः जागृत हो पायेगी! मानव स्वयं वास्तव में पवित्रहै किन्तु विषयों का संग उस पर दुष्प्रवृतियों की परत चढ़ा देता है। हमारे महापुरूषों का कहना है कि यदि मानव स्वयं वास्तव में पवित्र न होता तो वह कभी भी अपनी खोई पवित्राता को दोबारा प्राप्त ही न कर पाता।

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