अच्छे स्वास्थ्य के लिए सही दिनचर्या कैसी हो ?
अच्छे स्वास्थ्य के लिए सही दिनचर्या कैसी हो ?
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हर व्यक्ति के पास दो ही सबसे महत्वपूर्ण कुदरती संसाधन होते हैं, जो कि जन्म से ही सबको मिलते हैं !उनके अतिरिक्त अन्य संसाधन तो सभी को अपनी-अपनी परिस्थितियों व प्रयासों से मिलते हैं ! ये दो संसाधन हैं पहला- शरीर और दूसरा- हर दिन के 24 घंटों का समय ! ऐसा भी कह सकते हैं कि, ये दोनों ही सभी के जीवन के दो पहलू हैं ! शरीर जितना स्वस्थ्य होता हैं, वह उतना ही उपयोगी एवं सुखदायक होता हैं और शरीर से 24 घंटों में आप जो कुछ कर रहे हैं; वही आपकी उपयोगिता और उपलब्धियों को तय करता हैं ! इन 24 घंटों में विभिन्न गतिविधियां, आप जिस क्रम से व जितना समय देकर करते हैं; वही आपकी दिनचर्या कहलाता हैं ! आपका स्वास्थ्य ही नहीं, आपकी आपकी कार्यकुशलता, सफलता / असफलता / उपलब्धियां, खुशहाली और सम्मान सभी बहुत हद तक आपकी 'दिनचर्या' के सही या गलत होने पर निर्भर होता हैं ! इसलिए दिनचर्या के महत्त्व को जान-समझकर उसे हमेशा सही बनाये रखने की कोशिश करते रहना चाहिये !

यह लाख टके का सवाल है कि 'सही दिनचर्या कैसी होनी चाहिये ?' इसका जवाब सीधा दो टूक नहीं है, क्योंकि हर व्यक्ति के लिये इसका एक ही फार्मूला नहीं दिया जा सकता हैं ! व्यक्ति की उम्र, व्यवसाय, लिंग, शारीरिक गठन आदि के अनुसार इसमें विभिन्नता जरुरी है ! हाँ, कुछ सामान्य सिद्धांत भी है, जिन्हें समझकर अधिकांश लोगों की सही दिनचर्या तय की जा सकती है ! ऐसी ही सामान्य बातें यहाँ दी जा रही है ! हालाँकि ये सामान्य बातें भी 2 वर्ष से छोटे बच्चों, अति-वृद्ध एवं विशिष्ट रोगियों पर लागू नहीं होती हैं ! इन बातों को सरल रखने की कोशिश करते हुए मुख्यतः 12 वर्ष से अधिक उम्र के किशोरों एवं वयस्को को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं !

1 :  दिन के 24 घंटो को हम तीन बड़े हिस्सों में बाँट सकते है: अ) उत्पादक कार्यों या अपने व्यवसाय के लिए ब) आराम या नींद के लिए और स) स्नान-ध्यान, भोजन व अमोद-प्रमोद/ मनोरंजन के कामों के लिए ! तीनो भाग बराबर 8 घंटे के हो ऐसा कतई जरुरी नहीं है !

2 :  विभिन्न कामों या व्यवसायों की व व्यक्ति की आवश्यकता के हिसाब से दिन में कुल काम 7 से 10 घंटों का हो सकता है ! इसीलिए सामान्यतः एक शिफ्ट में काम का समय 8 घंटे माना गया है ! हालाँकि, यहाँ काम के कुल घंटो से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उस काम में व्यक्ति को कितना भौतिक (Physical) व मानसिक (Mental) श्रम करना पड़ा है और उसकी काम में कितनी रूचि है ! यदि किसी काम में व्यक्ति को रूचि हो या उसे करने में आनंद/ ख़ुशी एवं उत्साह का अनुभव होता हो तो वह काम व्यक्ति सामान्य से अधिक समय तक भी उसी तरह कर सकता है !

3 : व्यक्ति की उम्र, लिंग, व्यवसाय, थकान आदि के अनुसार आराम या नींद की आवश्यकता की मात्रा अलग-अलग होना स्वाभाविक है ! फिर भी विशेषज्ञओ के अनुसार एक वयस्क के लिए 6 से 8 घंटे की नींद होना काफी है ! जबकि किशोरों में यह जरुरत 8 से 10 घंटो की हो सकती है और छोटे बच्चो में यह इससे अधिक 9 से 12 घंटो तक की भी हो सकती है !

4 : काम एवं आराम के आलावा के कामों, जैसे अमोद-प्रमोद/ आपसी बातचीत, स्नान, भोजन, शौच, TV दर्शन, न्यूज़पेपर, आदि पर लगने वाला समय 6 से 8 घंटों का हो सकता है ! इन कामों पर दिए जाने वाले समय में सबसे अधिक अलग-अलग राय सामने आती है ! कई लोग 6 घंटे के समय को भी ज्यादा बताएँगे और कईयों को 8 घंटे का समय भी कम ही पड़ेगा ! यहां अपनी-अपनी आदतों व आवश्यकताओं के अनुसार समय का सुप्रबंधन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ! हम अधिक काम तभी कर पायेंगे, जबकि हम पहली श्रेणी की यानि 'उत्पादक गतिविधियों' में अधिक समय दे सकें और दूसरी व तीसरी श्रेणी की गतिविधियों को कम से कम समय में पूरा कर सकें !

ध्यान रखे कि इस उद्देश्य के लिए भी, खुद के साथ भी कोई जोर-जबरदस्ती नहीं होना चाहिए ! हम जो कुछ करें खुद की प्रकृति को समझते हुए, उद्देश्य को ध्यान में रखकर, ठन्डे दिमाग से अच्छी तरह सोच-समझकर करें तो कठिनतम काम भी आसान हो जाएंगे 1 आमतौर पर जब भी कहीं दिनचर्या संबंधी बात होती है लोग उसे हर दिन का एक मिनट-दर-मिनट का टाइम-टेबल बनाना समझ लेते हैं ! जबकि हर व्यक्ति किसी पूर्व-निर्धारित टाइम टेबल पर नहीं चल सकता है ! फिर भी इस प्रकार का टाइम-टेबल बनाना बहुतों के लिए उपयोगी है ! खासतौर पर उनके लिए जन्हें यह तय हो कि उन्हें प्रतिदिन क्या-क्या काम करने है ! किन्तु बहुसंख्यक लोगों को इस प्रकार की सुविधा नहीं है ! इसलिए दैनिक टाइम-टेबल बनाने से पहले हम उसके खास-खास सिद्धांतों को समझ लें और उसमें अपनी स्थिति अनुसार ही विभिन्न कामों में उपलब्ध समय का समुचित वितरण करें !

यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आधुनिक युग में लोग केवल दिन के घंटों में ही काम नहीं करते है ! कई अर्ली -मॉर्निंग शिफ्ट वाले सूर्योदय होने से पहले ही काम शुरू कर देते है तो कई रात की शिफ्ट वाले रात की शुरुआत से पहले व कई मध्य-रात्रि के बाद! अलग-अलग शिफ्ट वालों की दिनचर्या बहुत अलग-अलग होना स्वाभाविक ही नहीं जरुरी भी है ! इसलिए अब पिछली शताब्दी के लोगों की तरह सुबह - सुबह जल्दी उठकर दिनचर्या शुरू कर देने का उपदेश सभी को नहीं दिया जा सकता है ! इन्ही सब कारणों से हम 24 घंटो को उपरोक्त तीन प्रकार की श्रेणियों में बाँट लेने को दिनचर्या तय करने के लिए पहला सबसे जरुरी कदम मानते है ! इसीलिए यह लेख दिनचर्या संबंधी लेखों की पहली सीढ़ी है !

 हरिप्रकाश 'विसंत

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