मैं अद्भुत हूँ, मैं कच्छ हूँ : द ग्रेट रण ऑफ कच्छ
मैं अद्भुत हूँ, मैं कच्छ हूँ : द ग्रेट रण ऑफ कच्छ
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बेटे, उठ जा सुबह हो गई है, चाय पी ले। माँ की आवाज से मेरी नींद अचानक ही टूट गई। आंख खुली तो ऊपर पंखा घूमता हुआ नजर आ रहा है। एक तो ठण्ड का मौसम और ऊपर से ये पंखा मुझे रजाई को छोड़ने नहीं दे रहा था, लेकिन बे-मन ही सही मैं उठा मुँह धोया और चाय की चुस्की के साथ आज की दिनचर्या के बारे में सोचने लगा। अब नहाना है, तैयार होना है, काम पर जाना है, दिन-भर काम काम करना है, वापस घर आना है और खाना खाकर सो जाना है। तभी अचानक बे-रंग सी इस जिंदगी में रंग भरने का ख्याल आया। फिर कुछ देर सोचा और ऑफिस में फ़ोन कर छुट्टी ली, माता-पिता से इजाजत ली और थोड़ा सामान लेकर मैं निकल पड़ा कच्छ के रण उत्सव की ओर। ऐसा लगा जैसे रण उत्सव मुझे बुला रहा हो। वो कह रहा हो आओ मुझे देखो, मैं कच्छ हूं... जी हाँ मैं ही हूँ 'द ग्रेट रण ऑफ कच्छ'....

सफेद रेगिस्‍तान के नाम से मशहूर कच्छ के रण उत्सव के प्राकृतिक सौन्दर्य के अद्भुत सौन्दर्य को देखने की तमन्ना लिए मैं अहमदाबाद पहुंचा। वहां से मैं सड़क के रास्ते करीब 403 किलोमीटर का रास्ता तय कर रण उत्सव पहुंचा। जाते-जाते शाम हो चुकी थी। रण महोत्‍सव पहुंचा तो मुझसे पास मांगा गया। मेरे पास पास नहीं था क्योंकि मुझे नहीं पता था कि यहाँ पास माँगा जाता है। उन्होंने बताया कि बीस किलोमीटर पीछे वाले तोरण द्वार पर पास मिलता है। तब मैंने उन्हें बताया कि मैं पत्रकार हूँ। मेरी ID देख मुझे भीतर घुसने दिया गया। थोड़ा सा थका हुआ था, लेकिन वहां पहुँचते ही मेरे अंदर एक अदृश्य ऊर्जा प्रवाहित हुई। रंगों का वो सैलाब, चांदनी रात में चमचमाती श्वेत रेत, कही उभरती-कही गद्देदार धरती, खिला पूरा चांद और हवाओं में गूंजती मधुर लोक धुनें, जैसे यह नजारा मुझसे कह रहा हो मुझे देखो, मैं अद्भुत हूं, मैं कच्छ हूं.... जी हाँ मैं ही हूँ 'द ग्रेट रण ऑफ कच्छ'....

नमक की बहुलता वाला यह क्षेत्र मुझे मीठा सा अहसास करा रहा था। नमकीन दलदल का यह वीरान प्रदेश है रण उत्सव के कारण इतना खूबसूरत लग रहा था कि इस अहसास को शब्दों में बयान कर पाना आसान नहीं। मैं स्वतः ही रण उत्सव की ओर खींचा चला गया। चांद की रोशनी में यह पूरा क्षेत्र ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं किसी दूसरे ग्रह में आ गया हूँ। पूरा क्षेत्र रोशनी से जगमगाया हुआ था। वहीँ थोड़ी ही दूर मुझे कुछ विदेशी सैलानी दिखे। उनके खिले हुए चेहरे, एक दूसरे के फोटो लेते हुए उनकी ख़ुशी मुझे हिंदुस्तानी होने पर गर्व महसूस करवा रही थी। इस दौरान मुझे लगा जैसे वह क्षेत्र मुझसे कह रहा हो मैं हिंदुस्तान का अद्भुत स्थल हूँ। मैं कच्छ हूं.... जी हाँ मैं ही हूँ 'द ग्रेट रण ऑफ कच्छ'....

यहाँ पहुंचकर सबसे पहले मैं टूरिस्ट कैम्प पहुंचा। यहाँ एसी और नॉन एसी टेंट की व्यवस्था है। यहाँ करीब 7500 रुपए चुकाकर मैंने एक रात के लिए एक कैम्प बुक किया। कैम्प के अंदर हीटर, पंखा, ठंडा-गर्म पानी, पलंग, कालीन और तमाम सुविधाएं देख मैं हैरान रह गया। महलों से अधिक सुकून देने वाले कैम्प में मैंने बैग एक ओर रखा और थोड़ी देर बिस्तर पर लेटा। हालाँकि कच्छ देखने की मेरी लालसा ने मुझे ज्यादा देर बिस्तर पर रहने नहीं दिया और मैं निकल पड़ा कच्छ की सेर करने के लिए, 'द ग्रेट रण ऑफ कच्छ' की ओर....

बाहर निकल कर मुझे ऐसा समां देखने को मिलेगा, जिसमें बंधकर मैं खुद को भूल गया। मुझे बाहर अलग-अलग समूहों द्वारा स्थानीय रंगों में सराबोर कर देने वाले पारंपरिक लोकगीतों और नृत्य-संगीत की प्रस्तुतियां देखने को मिली। प्राचीन वाद्यों की तान पर मन को मोह लेने वाले गीत और भारी-भरकम पगड़ी व लहंगे-चोली में झूमते हुए लोग। कुछ ऐसा ही अद्भुत नजारा था पाकिस्तान की सरहद से लगे कच्छ का। सफर लम्बा था और जोरदार भूख भी लगी थी, इसलिए निकल पड़ा कुछ खाने के लिए। बाजार जाते समय वहां एक बड़ी सी स्‍क्रीन नजर आई, जिसमे अमिताभ बच्‍चन का विज्ञापन लगातार चल रहा है.... कुछ दिन तो गुजारों गुजरात में... जिसने कच्‍छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा.... फिर थोड़ी देर बाद स्‍क्रीन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नजर आए। हो सकता है आप बच्‍चन और मोदी के आलोचक हो, लेकिन उनकी बात में दम तो है। इसी बीच चलते-चलते मैं एक अच्छी होटल पहुंचा। वहां वेटर मेरे पास आया और गुजराती में बोला तमे शू लेवानु छे। मैं उसे टकटकी लगाए देखता रहा। भूख से व्याकुल मेरा चेहरा देख वह फिर बोला, क्या लेंगे आप। मैंने संभलते हुए कुछ खाना आर्डर किया। कुछ ही देर में वह बढ़िया सा भोजन लेकर आया। यकीन मानिए चांदनी रात में स्‍वादिष्‍ट रेसिपी का आनंद ही कुछ ओर है। हालाँकि भोजन थोड़ा मीठा था, लेकिन कच्छ का माहौल उसे मेरे लिए स्‍वादिष्‍ट बना रहा था। खाना खाकर वापस कैंप में आकर मैं सो गया क्यों कि कल मुझे कल कच्छ जो देखना था, वहीँ 'द ग्रेट रण ऑफ कच्छ'....

सुबह उठकर निकल पड़ा मैं अपने अद्भुत सफर पर। हजारों की संख्या में यहाँ पर्यटक मौजूद थे। खारा पानी, दूर तक रेगिस्तान, धूल भरी गर्म हवाएं को यहां के लोगों ने अपनी कला से रंग-बिरंगा बना दिया था। आगे गया तो मुझे ऊंट से बंदी डोरी पकड़े एक लड़का नजर आया। मैं उसके पास गया और कहा मुझे ऊंट की सवारी करनी है। उसने मुझे ऊंट पर बिठाया और खुद डोरी पकड़े पैदल चलने लगा। मैं पहली बार ऊंट पर बैठा था थोड़ा डर भी लग रहा था। इस दौरान मुझे कुछ कलाकार नजर आए, जो अपनी कला के माध्यम से रेत पर सुंदर चित्र का निर्माण कर रहे थे। मेरी तरह कई देशी-विदेशी लोग ऊंट की सवारी कर रहे थे। ऊंट से उतरकर मैंने उस लड़के को 100 रूपये दिए और मैं पहुँच गया रंग बिरंगे बलून के पास। मैं बलून में बैठा और कुछ ही समय में मैं आसमान की ऊंचाइयों में था। उपर से मुझे तरह-तरह के लोग नजर आए, सभी अपने-अपने तरह से इस खास पल को और खास बनाने में लगे हुए थे। यहीं से मुझे पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र का नजारा भी देखने को मिला। बलून से उतरकर मैं फिर निकल पड़ा कच्छ के सफर पर, 'द ग्रेट रण ऑफ कच्छ' के सफर पर....

उत्कृष्ट मिरर वर्क, चित्रों से सजी दीवारें, कच्छी कढ़ाई, एप्लीक वर्क, मोहक परिधान, सॉफ्ट फर्नीशिंग, गीत, नृत्य सब कुछ अद्भुत लग रहा था। सफेद नमक के पहाड़, मंत्रमुग्ध कर देने वाला सूर्योदय और सूर्यास्त तथा गुजराती संस्कृति के विविध रंग मुझे अपनी तरफ आकर्षित कर रहे थे। यहाँ पर्यटकों के लिए लोकनृत्य, संगीत के कार्यक्रम, ऊंट की सवारी, विशेष लाइव टेन्ट, शिल्पकृतियां, रण की सफारी, कच्छ कार्निवल, सांस्कृतिक कार्यक्रम, वैकल्पिक पर्यटन व कच्छ के गांवों की सैर समेत खेल-कूद की व्यवस्था थी। वहां से मैं नमक के मैदानों की ओर निकल पड़ा, जहाँ मुझे बीएसएफ की सीमा सुरक्षा चौकी पर रोका गया। मैंने उसे बताया कि मैं पत्रकार हूँ तो मुझे प्रवेश की अनुमति मिल गई। यहाँ एक बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था ‘ईको सेंसिटिव ज़ोन’। वहां पहुँचते ही मुझे ऐसा लगा कि जैसे ये दुनिया का अंत हो। आप इस जगह को चांद, शुक्र, मुगल, अंतरिक्ष कुछ भी कह सकते हो, क्योंकि वहां सिर्फ और सिर्फ चमकदार सफेद रंग था। न पेड़, न घर न कुछ और सिर्फ चमकदार सफेद। यकीन मानिए आंखें खुली रखने की जिम्‍मेदारी अगर आपने निभा ली, तो मरने दम तक आपकी इस जगह से वापस जाने की इच्छा नहीं होगी। पैरों के नीचे ठोस सफेद नमक। इस अद्भुत नज़ारे को देख मुँह से निकल पड़ा... ब्यूटीफूल, कितना सूंदर है कच्छ... 'द ग्रेट रण ऑफ कच्छ'....

वहां से वापस आया तब तक रात का समय हो चला था और मैं खुले आंगन में चांदनी रात को निहारते हुए चाय की चुस्कियां ले रहा था। अभी मुझे काफी कुछ देखना था, लेकिन कल ऑफिस जाना था और रात को 10 बजे बस में बैठना था तो मैंने अपना सामान बाँधा और कच्छ के रण में गुजारे पलों को अटूट यादों में शामिल कर मैं निकल पड़ा अपनी पुरानी दुनिया की ओर... और अपने पीछे छोड़ चला था अद्भुत कच्छ को, 'द ग्रेट रण ऑफ कच्छ' को...

कुछ दिन तो गुजारिए रण उत्सव के शामियानों में!

 

कपिल माली

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