अध्यात्म का प्रारंभ तो स्वयं की खोज से होता है
अध्यात्म का प्रारंभ तो स्वयं की खोज से होता है
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अध्यात्म का प्रारंभ तो स्वयं की खोज से होता है. अध्यात्म सदा से ही समय की प्रथम मांग रहा है लेकिन भौतिकवाद में डूबा मानव सदा से ही संसार को जानना चाहता है. विचार करने योग्य तथ्य है कि यदि किसी को अपने घर में पड़ी वस्तुओं की जानकारी ही नहीं है, लेकिन उनके आस-पड़ोस का बहुत ज्ञान एकत्रित कर रखा हैं. एसी आस्था में कोई भी प्राणी उसी विद्धता का सम्मान नहीं करेगा. 

ठीक यही बात हमारे जीवन में घटित हो रही है. हम स्वयं से अनजान हैं, हम कौन हैं, कहा से आए हैं इत्यादि प्रश्नों का हल हमारे पास नहीं है, किन्तु संसार के ज्ञान से ही हम महानता के शिखर को छूना चाहते हैं. जो हमारे जीवन का एक बहुत बड़ा भ्रम है. अध्यात्म हमारे भ्रम को तोड़ता है और हमें सत्य की अनुभूति की ओर ले जाता है. यह सत्य कहीं बाहर नहीं अपितु हमारे भीतर ही है और उसका दिव्य प्रकाश भी हमारे भीतर प्रकट होता है. इस मिथ्या भरे संसार में चारों तरफ भ्रम ही भ्रम है. अध्यात्म दिव्य चक्षु द्वारा प्रकट वह मार्ग है जिसके द्वारा मानव की सद्शक्तियाँ पुनः जाग्रति होती हैं. इसलिए अध्यात्म पथ को कई भक्तों ने दृष्टि सुधार का मार्ग भी कहा है. 

वास्तव में मानव स्वयं तो पवित्र है किन्तु विषयों का संग, उस पर दुष्प्रवृत्तियों की परत चढ़ा देता है. हमारे महापुरषों का कहना है कि यदि मानव स्वयं में पवित्र न होता तो वो कभी भी अपनी खोई पवित्रता को दोबारा प्राप्त ही नहीं कर पाता. ऐसे में कोई भी दुष्टता के पश्चात् अच्छाई की ओर कभी नहीं झुक पाता. जिस प्रकार अन्धकार को दूर करने के लिए प्रकाश की ज़रूरत होती है उसी प्रकार समाज में फैले इस अन्धकार को दूर करने हेतु हमें स्वयं प्रकाश बनाना होगा.

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