प्रेम की भाषा के जन प्रिय कवि कबीर दास !
प्रेम की भाषा के जन प्रिय कवि कबीर दास !
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हिंदी साहित्य में कबीर जी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है. उनके नाम की अलग ही विशेषता और महत्ता है. कबीर के वर्णन के बिना हिंदी साहित्य अधूरा है. कबीर दास जी संत के अलावा ऐसे समाज सुधारक थे जिन्होंने सर्व धर्म सम्मान का भाव रख कर अपने दोहों के जरिए जहाँ हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मों का भेद मिटाकर धार्मिक सद्भाव और प्रेम की मिसाल कायम की, वहीँ सामाजिक कुरीतियों पर भी जमकर प्रहार किया. दरअसल वे प्रेम की भाषा के ऐसे जन कवि थे जिन्हे आज भी सभी वर्गों के लोगों द्वारा न केवल याद किया जाता है, बल्कि उनके दोहों में दी गई नसीहतों को आत्मसात भी किया जाता है.

कबीरजी का जन्म काशी में लहरतारा के पास सन् 1398 में ज्येष्ठ पूर्णिमा को हुआ. कबीर के धर्म को लेकर भी मत-मतांतर है. कोई उन्हें हिन्दू तो कोई मुस्लिम मानते थे. जो भी हो लेकिन इन सबसे पहले वे एक इंसान थे जिन्होंने प्रेम और सद्भाव का सन्देश दिया. उनके माता-पिता और पालन-पोषण को लेकर भी भ्रांतियां है. उनका जुलाहा परिवार में पालन होने का जिक्र किया जाता है. कहा जाता है कि उनके माता-पिता नीमा और नीरू थे, जिन्होंने उनका लालन -पालन किया. कबीर अपना गुरु रामानन्द जी को मानते थे जिनसे पहली भेंट गंगा स्नान के समय हुई थी. एक घटना ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने रामानन्द जी को अपना गुरु मान लिया.

कबीरजी अपनी बात सहज सरल और ऐसी साधु शैली में लिखते थे जो अनपढ़ तक को समझ में आ जाती थी वे पोथियों का ज्ञान नहीं , बल्कि, प्रेम की भाषा के जन कवि थे. वे ऐसी परम्पराओं के विरोधी थे जो वैर भाव को बढ़ावा दे.चाहे वे हिन्दू धर्म की हों या मुस्लिम धर्म की. कबीर जी के विचारों और दोहों के संग्रह 'बीजक ' में अनमोल वाणी को सहेजकर रख गया है. यह हिंदी साहित्य की अनुपम धरोहर है. उनके द्वारा रचित दोहे आज भी प्रासंगिक है. ईश्वर से पहले गुरु की महत्ता को कबीर ने जो प्रतिपादित किया वह आज भी कायम है. "ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये, औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होये" वाला दोहा हमें क्रोध न करने, शांति से काम लेने और शांति से जीने का सन्देश दे रहा हैं.

कबीर जी की मृत्यु मगबहर में सन् 1518 में हुई. तब हिन्दू-मुस्लिमों में उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद छिड़ गया. दोनों अपने रीति रिवाजों से यह संस्कार करना चाहते थे, लेकिन जब कबीर जी के शव पर से चादर हटाई तो वहां फूल मिले जिसे दोनों धर्मों के लोगों ने आपस में बाँट लिए. जीवन भर प्रेम की अलख जगाने वाले कबीर जी मृत्यु के बाद भी दोनों धर्मों के अनुयायियों को प्रेम से रहने का सन्देश दे गए. सच कहा है कि महान लोग कभी मरते नहीं है, वो विचारों में हमेशा जिन्दा रहते हैं. कबीर के विचार भी हमारा आज भी पथ प्रदर्शन कर रहे हैं.

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