विचार इंसान को पालते-पोसते हैं
विचार इंसान को पालते-पोसते हैं
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"विचार" विचार व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्त्व रखते हैं. इंसान होने के नाते हम सोचते हैं कि हम आजाद हैं, हम मानते हैं कि हमारे विचार अपने हैं, हम सोचते हैं कि हमारे धार्मिक विश्वास अच्छे हैं, हम सोचते हैं कि हमारे मस्तिष्क स्वतंत्र हैं. लेकिन सच्चाई यह है-जब हम जन्म लेते हैं तो हमारे पास कोई विचार नहीं होते. एक बच्चे के रूप में हम आग को छूने और सांप को पकड़ने की कोशिश करते हैं. जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं तो हमें अपने माता-पिता से विचार मिलने लगते हैं. हम सब अपने-अपने परिवारों के धार्मिक विश्वासों को अपना लेते हैं. अगर हमारे माता-पिता हिन्दू होते हैं तो हम हिन्दू बन जाते हैं. अगर माता-पिता मुस्लिम हैं तो हम मुस्लिम बन जाते हैं. अगर हम भारत में पैदा हुए हैं तो भारतीय बन जाते हैं. विचार हमारे दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं. हम अपने अंदर घुस चुके विचारों, विश्वासों और परंपराओं के लिए लड़ने लगते हैं. विचार सुरक्षा बैरियर तोड़ते हैं|

विचार व्यक्ति को जीवन में बहुत आगे बढ़ाते हैं, तो कई बार जीवन में यही विचार लोगों की जान भी लेते हैं. हाल ही मे कुछ समय पहले पाकिस्तानी प्रांत पंजाब के एक उदारवादी गवर्नर सलमान तासीर की हत्या उन्हीं की सुरक्षा में तैनात एक कमांडो मलिक मुमताज कादरी ने कर दी थी. सिर्फ इसलिए, क्योंकि तासीर ने पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून में सुधार की वकालत की थी. गत 29 फरवरी को फांसी पर लटकाए गए कादरी का मानना था कि तासीर ने इस कानून में सुधार की जरूरत जताकर पैगंबर मोहम्मद का अपमान किया है. जनवरी 2015 में दो जिहादियों ने यह महसूस किया कि फ्रेंच पत्रिका शार्ली अब्दो के संपादकों ने पैगंबर मोहम्मद की निंदा करने का गुनाह किया है. अपनी इस सोच के साथ वे पेरिस में पत्रिका के कार्यालय में घुस गए और एक दर्जन लोगों को मार डाला. दिसंबर 2015 में बिजनौर के मौलाना अनवारुल हक सादिक की अगुआई में इस्लामिक धर्मगुरुओं ने पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने के आरोप में कमलेश तिवारी नाम के व्यक्ति का सर कलम करने के लिए 51 लाख रुपये के इनाम की घोषणा की।

इंसान विचारों के गुलाम होते हैं. परिवार, विश्वविद्यालय, अखबार और टेलीविजन चैनल विचारों को पालते-पोसते हैं. विचार से ही विचारधारा बन जाती है, जो हमें सामाजिक सच्चाई देखने से रोकती है. हम सच्चाई देखना भी नहीं चाहते. उदाहरण के लिए हम जानते हैं कि एक दिन सबको मरना है, लेकिन हम ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे हमेशा इस धरती पर रहेंगे. किसी के लिए अपने अंदर के विचारों को पूरी तरह निकाल फेंकना आसान नहीं है, लेकिन कम से कम विवादों के मामले में तो हमें भारतीय संविधान को मानना ही चाहिए।

स्वामी विवेकानद का कहना हे की "आप जैसे ही विचार करेंगे, वैसे आप हो जायेंगे. अगर अपने आपको निर्बल मानेंगे तो आप निर्बल बन जायेंगे, और यदि आप अपने आपको समर्थ मानेंगे तो आप समर्थ बन जायेंगे|" विचार विश्वास, सोच, कल्पना, सामाजिक रीति-रिवाज, परंपरा या सामान्य विचारों के रूप में हमारे मस्तिष्क में घुसते हैं। 

                                                                                                                             शैलेन्द्र गोयल! 

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