गरीब के कांधे पर इंसानियत का जनाज़ा, दर्द में लिपटी दास्तान
गरीब के कांधे पर इंसानियत का जनाज़ा, दर्द में लिपटी दास्तान
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हिंदुस्तान दुनिया के दस अमीर मुल्कों में सातवें नंबर पर है. हमारे देश में अरबपतियों की तादाद भी बहुत से मुल्कों से कहीं ज्यादा है. फिर बीच-बीच में ये भी सुनने में आता है कि भारत का पूरी दुनिया में डंका बज रहा है. अब इन सब अच्छी-अच्छी बातों के बीच इसी भारत से जब कुछ ऐसी तस्वीरें बाहर निकलती हैं तो मन ये सोचने को मजबूर हो जाता है कि क्या भारत के अंदर भी दो भारत हैं? एक अमीरों का भारत और दूसरा गरीबी और लाचारगी का भारत?

नरेंद्र मोदी जी मौजूदा प्रधानमंत्री है इसलिए बात इनसे शुरू की. पर सिर्फ एक अकेले ही इनको कोसना ठीक नही होगा. कायदे से कटघरे में हर पार्टी का नेता है. हर पार्टी का वो नेता जो हिंदुस्तान की बात करता हो... जो हिन्दुस्तानियो की बात करता है.. और फिर उनके नाम पर नेतागिरी करता है... ऐसे हर नेताओ से गुजारिश है की वो इन खबरों पर ध्यान दे और फिर सोचे की क्या ये सचमुच इक्कीसी सदी का हिंदुस्तान है..या फिर चौथी या पांचवी सदी का...

दुनिया में भारत का डंका बज रहा है.. और भारत में एक बाप अपने मासूम बेटे की लाश कांधे पर लिए पुरे शहर में अस्पताल दर अस्पताल दौड़ रहा है. स्ट्रेचर नही है, तो एम्बुलेंस की क्या आस लगाए... हालात ये है की एक महिला की लाश को घर तक ले जाने के लिए उसके रिश्तेदार लाश के हाथ पैर तौड़कर उसकी गठरी बना रहे थे....ताकि लाश की पोटली बनाकर... बांस के सहारे कंधे पर रखकर... मिलो तक चलकर घर जाया जा सके...फिर वहा से शमशान... क्योकि एम्बुलेंस नही है.....ये घटनाये दिखाती है की भारत गरीब है... लेकिन दुनिया के सबसे बड़े अमीर यही बसते है... अभी हल ही में नई वर्ल्ड वेल्थ की एक रिपोर्ट में बताया गया कि हिंदुस्तान दुनिया के दस सबसे आमिर देशो में सातवें नंबर पर आता है... आंकड़ो के मुताबिक स्विस बैंक में भारतीयों के कुल 65 लाख 223 अरब रूपये जमा है. यहाँ जितना पैसा स्विस बैंक में जमा है वह हमारे जीडीपी का छह गुना ज्यादा है. तो दरअसल सच्चाई यह है कि हमारे भारत देश के अंदर दो भारत बसते है.. एक अमीर भारत, दूसरा गरीब,भूखा, लाचार और बेबस भारत... जो अपने अंदर से बस ऐसी ही घटनाये उगलता है...

जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहा है...जरा तकलीफ उठाये और वो भी देखे क्योकि यह इक्कीसवी सदी की सबसे ताज़ा घटना है...एक बाप अपने बेटे को कांधे पर लेकर हांफते हुए दौड़ रहा है.. इस उम्मीद में की कोई डॉक्टर उसके बेटे को दवाई दे दे... हो सके तो भर्ती कर ले.. और फिर उसके बेटे को ठीक कर दे... हुआ भी क्या था बेटे को... बुखार ही तो था, हाँ थोड़ा तेज़ था...बुखार तो अपने यहाँ आम बीमारी है.. कोई भी डॉक्टर इसकी दावा दे देता है...... अरे लेकिन कोई डॉक्टर उस मासूम को देखता तो सही...दवाई तो देता...लेकिन उसे किसी ने नही देखा... सबने बेबस बाप को भगा दिया...कहा कि दूसरे डॉक्टर के पास जाओ... यहाँ कोई बेड खाली नही है.... न बच्चे के लिए स्ट्रैचर... मरीजो को लिटाने वाले स्ट्रेचर भी पता नही कागज़ पर ख़रीदे गए थे...या ख़रीदे ही नही गए थे...एम्बुलेंस तो खैर बहुत बड़ी गाड़ी होती है... लिहाजा गरीब बाप क्या करता..अपने बेटे को कंधे से लगाए...सीने से लगाए...एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भागता रहा.... बिना यह देखे कि जिस बेटे को वो कंधे पर उठाये भाग रहा है वो तो कब का मर चूका है..वो अपने बीमार बेटे को नही बल्कि उसकी लाश उठाये भाग रहा था...हॉस्पिटल में डॉक्टर ने उसे देखा, बस इतना ही कहा कि यह तो कब का ही मर चूका है.. दरअसल वह बाप अपने बेटे कि लाश उठाये भाग रहा था...जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहा है.... वो जानना नही चाहेंगे कि एक बेटा मरने के बाद भी उस तरह एक बाप के कंधे पर क्यों गया....

तो सुनिए.. जिस अस्पताल में एक बच्चे के लिए स्ट्रेचर नही है, उस अस्पताल में किसी मुर्दा गाड़ी कि उम्मीद क्या कि जाये...उस अस्पताल में बहुत सी मौते हुई है पर वह किस्मत वाले मुर्दे को ही मुर्दागाड़ी में लेटकर जाने का सौभाग्य मिलता है.... क्या कहे और क्या न कहे... यकीन मानिये बेबसी और लाचारी की ऐसी दास्तानों से देश का कोई भी कोना शायद ही अछूता हो... बाप बेटे की लाश उठाये भाग रहा है, बेटा मां को गठरी में पैक कर रहा है..तो कही बच्चे को जन्म देने के लिए मां को मीलो साइकिल पर बैठ कर जाना पड़ता है...

संदीप मीणा

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