वास्तुशास्त्र के अनुसार सोते समय सिर इस दिशा में होना चाहिए
वास्तुशास्त्र के अनुसार सोते समय सिर इस दिशा में होना चाहिए
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वास्तुशास्त्र मुख्यतः आठ दिशाओं के प्रभाव को रेखांकित करता है। इन आठ  दिशाओं में से प्रत्येक दिशा की अपनी महत्ता और विशेषता है। विद्युत चुम्बकीय तरंगों का प्रवाह पृथ्वी की आंतरिक सतह में दक्षिण से उत्तर की ओर होता है, जबकी पृथ्वी की बाह्य सतह पर उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर होता है। 

हमारी स्थिति पृथ्वी की बाह्य सतह पर होने के कारण इन चुम्बकीय तरंगों का प्रवाह हमारे शरीर में भी उत्तर से दक्षिण की ओर ही होता है। 

यदि हम उत्तर की ओर सिर रखकर सोते हैं, तो ये तरंगें सबसे पहले हमारे सिर को छूती हैं और पैर की ओर प्रवाहित होते हुए शरीर से बाहर निकलती हैं। 

ऐसी स्थिति में ये तरंगें हमारे शरीर में रक्त प्रवाह को मस्तिष्क की स्थिति के ठीक विपरीत दिशा में प्रवाहित करती हैं। 

शयन के समय विद्युत चुम्बकीय तरंगों का प्रभाव शरीर पर ज्यादा होता है। अत: वास्तुशास्त्र के अनुसार सोते समय सिर दक्षिण में रखना चाहिए। 

यदि दक्षिण में सिर रखना संभव ना हो तो पूर्व व पश्चिम में भी सिरहाना रखा जा सकता है। हर दिशा का अपना अलग प्रभाव है। चारों दिशाओं की संधि अर्थात् आग्नेय, वायव्य आदि कोनों में सिरहाना रखने से बचना चाहिए।

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